Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
४०६ ]
(408)+33-****
- ३८०९४२२६१ योजन अन्तराल है ।
विषण्णती
=
२४
पुष्करार्ध - स्थित चन्द्रोंका अन्तर- प्रमाण
एक्क- चउट्ठाण - दुगा, अंक-कमे सत्त छक्क एकक कला ।
-- पंचविसा, अंतरमिद्रण पोखरलुम्मि ।।५७० ॥
२२२२१ । ६३ ।
अर्थ- पुष्कराद्ध द्वीपमें चन्द्रोंके मध्य एक और चार स्थानोंमें दो इन अंकोंके क्रमसे बाईस हजार दो सौ इक्कीस योजन और पांच सौ उनंचाससे विभक्त एक सौ सड़सठ कला अधिक अन्तर है ।। ५७० ।।
विशेषार्थं – पुष्करार्धद्वीपका विस्तार ८ लाख यो० है । चन्द्र संख्या ७२ और इनका बिम्ब विस्तार ( ५x५३ )=योजन है। उपर्युक्त नियमानुसार यहाँके दो चन्द्रोंका पारस्परिक अन्तर प्रमारण इस प्रकार है
( ८०००००
- २२२२१
fix)++ - १२१६६४० ब
योजन अन्तराल है ।
[गा : ३७०-३७२
चन्द्रकिरणों की गलि—
जिय-जिय-पढम-पहाणं, जगदीणं अंतर प्पमाण - समं ।
यि णिय-लेस्सगदीओ, सभ्य मियंकाण पत्लेककं ।। ५७१ ।।
-
·
अर्थ - अपने - अपने प्रथम पथ और जगतियोंके अन्तर प्रमाणके बराबर सब चन्द्रोंमेंसे प्रत्येक को अपनी-अपनी किरणों की गतियाँ होती हैं ।। ५७१ ||
समुद्रादिमें चन्द्र-वीथियोंका प्रमाण
तीसं णउदी तिसया, पण्णरस-जुदा य त्राल पंच-सया ।
लक्षण - प्यहुवि चउक्के, चंगाणं होंति वीहीओ ।। ५७२ ।।
३० | ९० | ३१५ । ५४० |
अर्थ - लवण समुद्रादि चारमें चन्द्रोंकी क्रमशः तीस, नब्बे तीन सौ पन्द्रह और पांच सौ चालीस वीथियां हैं ॥ ५७२ ।।