Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : ३९० ३९२ ] सत्तमो महाहियारो
[ ३४९ अर्थ-पुण्डरीकिणी नगरीमें तम-क्षेत्र पाठ, शून्य, तीन, आठ और पांच इन अंकोंके क्रमसे अट्ठावन हजार तीन सो पाठ योजन और ग्यारह हजार सात सौ उन्यासी भाग प्रमाण रहता है ।।३८६।।
(पुण्डरी किणीपुरकी परिधि : २९०७४६५-२32240 ) x = RAHEAF५८३० योजन तम-क्षेत्र ।
___ अभ्यन्तर पथमें तम-क्षेत्रणाल अषक-ति नका, अंक - म तिमान-प्रस-एक्कंसा । एभ-तिय-अद्रुक्क हिवा, विदिय-पहक्कम्मि पढम-पह-तिमिरं ॥३६॥
६३१८९ अर्थ-सूर्यके द्वितीय पयमें स्थित होनेपर प्रथम मार्ग में तमक्षेत्र नौ, पाठ, एक, तीन और छह इन अंकोंके ऋमसे तिरेसठ हजार एक सौ नवासी योजन और एक हजार पाठ सौ तीससे भाजित एक हजार सात सौ तेरानबै भाग अधिक रहता है ।।३९०।।
(प्रथम पथकी परिधि-31 )xs="५१ = ६३१८९१४४ योजन तम-क्षेत्रका प्रमाण।
द्वितीय पथमें तम-क्षेत्रतिय-रणव-एक्क-ति-छक्का, अंकाण कमे दुगेक्क-सत्तंसा । पंचेक्क-णव-विहत्ता, बिदिय-पहक्कम्मि विविध-पह-तिमिरं ॥३६॥
प्रम-सूर्यके द्वितीय पथमें स्थित होनेपर द्वितीय वीथीमें तिमिर-क्षेत्र तीन, नो, एक, तीन और छह, इन अंकोंके क्रमसे तिरेसठ हजार एक सौ तेरानबै योजन और नौ सौ पन्द्रहसे भाजित सात सौ बारह भाग प्रमाण रहता है ।।३९१॥ ( द्वितीय पथकी परिधि ३१५१०६ यो ) 8६३१९३४१३ यो ।
तृतीय पथमें तम-क्षेत्रछण्णव-एक्क-ति-छक्का, अंक • कमे अड - दुगह एक्कंसा। णय-तिय-अठेक्क-हिता, विविय-पहक्कम्मि तदिय-मग्ग-तमं ॥३९२॥
___६३१९६ । १४३। एवं मज्झिम-मनगंतं बव्वं ।
अर्थ—सूर्यके द्वितीय पथमें स्थित होनेपर तृतीय मार्ग में तम-क्षेत्र छह, नौ, एक, तीन और छह, इन अंकोंके क्रमसे तिरेसठ हजार एक सौ छयानबै योजन और एक हजार आठ सौ तीससे भाजित एक हजार आठ सौ अट्ठाईस भाग प्रमाण रहता है ॥३९२।।