Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : ५५५-५१९ ]
सत्तमो महाहियारो औरा द्वारा प्राप्त १५० नभखण्डोंका अतिक्रमण कालतीसट्टारसया खलु, मुहुत्त-कालेण कमइ जइ सूरो। तो केसिय - कालेणं, सय - पंचासं कमे इत्ति ॥५१५।।
१८३० । १ । १५०। सूरादो पक्खसं, दिवस • मुहत्तेण जइणतरमाहु । एक्कस्स महत्तस्स य, भागं एक्कट्रिमे पंच ॥५१६॥
अर्थ-जब सूर्य अठारह सौ तीस मगनखण्डोंको एक मूहूर्त में लांघता है, तब वह एक सौ पचास ( १५० ) गगनखण्डोंको किसने समयमें लांधेगा ? सूर्यको अपेक्षा नक्षत्र एक दिन महनों (३० मुहूर्तों ) में एक मुहूर्तके इकसठ भागों से पांच भाग अधिक जविनतर अर्थात् अतिशय वेग वाला है। अर्थात् १५० नभखण्डोंके अतिक्रमणका काल (१ )- मुहूर्त प्राप्त होता है ।।५१५-५१६।।
सूर्य और चन्द्रको नक्षत्र भुक्तिका विधानणखत्त-सीम-भाग, भजिये दिवसस्स जइण-भागेहि ।
लातु होइ रवि - ससि - णक्खत्ताणं तु संजोगा ॥५१७।।
अर्थ-सूर्य और चन्द्र एक दिनमें नक्षत्रों की अपेक्षा जितने गगनखण्ड पीछे रहते हैं, उनका नक्षत्रोंके गगनखण्डोंमें भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतने समय तक सूर्य एवं चन्द्रका नक्षत्रोंके साथ संयोग रहता है ।।५१७॥
सूर्यके साथ अभिजित् नक्षत्रका भुक्तिकालति-सय-दल-गणखंडे, कमेह जइ वियरो दिणिक्केणं । तउ रिक्खाणं णिय-णिय, गहखंड-गमण को कालो ? ॥५१॥
१५० । १ । ६३० । अभिजी-छसच मुहुसे, तारि य केवलो अहोरत्ते । सूरेण समं गच्छति, एत्तो सेसाणि बोच्छामि ॥५१६।।
दि ४ मु६।