Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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२८० ]
तिसोयपण्णत्ती
[ गाथा ! १५५-१६१ पर्य-तेरहवें पथमें दोनों चन्द्रोंका अन्तराल एक लाख पांच सौ चौदह योजन और छब्बीस कला ( १००५१४१ यो० ) प्रमाण है ॥१५७।। ___१००४४११३+७२३१ - १००५१४१३ यो० ।
लक्खं पंच-सयाणि, 'छासीदी जोयणा कला ति-सया । चउसीदी चोद्दसमे, पहम्मि विच सिवकराण ॥१५॥
१००५८६ । । अर्ष-चौदहवें पथमें चन्द्रोंका अन्तराल एक लाख पाँच सौ छयासी योजन और तोन सो चौरासी कला ( १००५८६३३ यो०) प्रमाण है ।।१५८।। १००५१४४ + ७२६५६ = १००५८६४६४ यो० ।
लक्खं छच्च सयारिंग, उणसट्ठी जोयणा कला ति-सया । पण्णरस - जुदा मग्गे, पण्णरसं अंतरं ताणं ।।१५।।
१००६५९ । । अर्थ --पन्द्रहवें मार्गमें उनका अन्सर एक लाख छह सौ उनसठ योजन और तीन सौ पन्द्रह कला ( १००६५९३३३ यो० ) प्रमाण है ।।१५९।।
१००५८६३+७२१५१-१००६५९.१५ यो० ।
बाहिर-पहादु-ससिणो, आदिम-मग्गम्मि आगमण-काले।
पुग्यप-मेलिद-खेत्तं, सोहसु जा चोद्दसादि-पढम-पहं ॥१६॥ मर्थ-चन्द्रके बाह्य पथसे प्रथम पथकी मोर पाते समय पूर्व में मिलाए हुए क्षेत्रको उत्तरोतर कम करने पर चौदहवें पथसे प्रथम पथ तक दोनों चन्द्रोंका अन्तराल प्रमाण होता है ।।१६०।।
चन्द्रपथकी अभ्यन्तर वीथीकी परिधिका प्रमाणतिय-जोयण-लक्खाणि, पण्णरस-सहस्सयाणि उणणउदी। अभंतर - वोहीए, परिरय - रासिस्स परिसंखा ॥१६१॥
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अर्थ-अभ्यन्तर वीथीके परिरय अर्थात् परिधिकी राशिका प्रमाण तीन लाख पन्द्रह हजार नवासी ( ३१५०८९ ) योजन है ।।१६१॥
१.द. उणसट्री।
२.द.ब.क. अ. सीदकराणं ।