Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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सत्तमो महाहियारो पूर्णिमाकी पहिचान -
जस्स मग्ने ससहर - बिनं दिसेदि य तेसु परिपुणं ।
सो होदि पुण्णिमषखो, दिवसो इह माणुसे लोए ॥ २०६ ॥
गाथा : २०६-२११ ]
अर्थ – उनमें से जिस मार्ग में चन्द्र निम्न परिपूर्ण दिखता है, यहाँ मनुष्य लोक में वह पूर्णिमा नामक दिवस होता है || २०६ ॥
कृष्ण पक्ष होनेका कारण
तवीहीदो लंघिय दोवस्त मारुद-हुदास - दिसादो ।
तदनंतर बीहीए, ऐति हु विणराहु-ससि-विनां ।। २०७ ।।
अथ -
-उस ( अभ्यन्तर ) दीधीको लांघकर दिनराहु और चन्द्र- बिम्ब जम्बुद्वीपकी वायव्य
और आग्नेय दिशासे तदनन्तर ( द्वितीय ) वीथी में आते हैं || २०७
ताधे ससहर-मंडल सोलस-भागेसु एक्क भागंसो ।
आवरमाणो दीसदि, राहू लंघरण विसेसेणं ॥ २०८ ||
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अर्थ - द्वितीय वीथीको प्राप्त होनेपर राहुके गमन विशेषसे चन्द्रमण्डलके सोलह भागों में से एक भाग आच्छादित दिखता है ||२०८ ||
अल-विसाए लंधिय, ससिबिंबं एवि वोहि अद्धसो ।
सेसद्ध खुण गच्छवि, अवर ससि भमिद हेदूवो ॥ २०६॥
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अर्थ --- पश्चात् चन्द्रबिम्ब आग्नेय दिशासे लांघकर वीथीके अर्थ भागमें जाता है, द्वितीय चन्द्रसे भ्रमित होनेके कारण शेष अर्ध-मागमें नहीं जाता है ( क्योंकि दो चन्द्र मिलकर एक परिषि को पूरा करते हैं ) || २०९ ॥
तदनंतर मग्गाई, रिणच्चं लंघेति राहु-ससि बिबा ।
परग्गि दिसाहितो, एवं सेसासु बीही ॥२१० ॥
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अर्थ – इसीप्रकार शेष वीथियों में भी राहु और चन्द्रबिम्ब वायव्य एवं आग्नेय दिशासे नित्य तदनन्तर मार्गों को लांघते हैं ।। २१० ।
- बिबस दिणं पड, एक्केषक-पहम्मि भागमेक्केक्कं ।
पच्छादेदि हु राहू, पणगरस कलाउ परियंतं ।।२११॥
अर्थ – राहु प्रतिदिन एक-एक पथ में पन्द्रह कला पर्यन्त चन्द्र- बिम्बके एक-एक भागको आच्छादित करता है ।। २११ ॥