Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
२२० ] तिलोयपण्यात्ती
[ गाथा : २३-२६ ___ अर्थ-कूट, जिनेन्द्र-भवन, प्रासाद, वेदिका और वन आदि सब ( की स्थिति ) भवनोंके सदृश ही भवनपुरोंमें भी जाननी चाहिए ।।२२।।
भवनपुरोंका वर्णन समाप्त हुआ ।
आवासों का निरूपण-- बारस-सहस्स-बे-सय-जोयण-कासा य जेट्ट-आवासा । होति जहण्णावासा, ति-कोस-परिमाण-वित्थारा ॥२३॥
__ जो १२२०० १ को ३३ अर्थ-व्यन्तरदेवोंके ज्येष्ठ ग्रावास बारह हजार दो सौ ( १२२०० ) योजन प्रमाण और जघन्य प्रावास तीन (३) कोस प्रमाण विस्तारवाले हैं ।।२३।।
कूडा जिणिव-भवरणा पासादा वेदिया वण-प्पहुदी' । भवण - पुराण सरिच्छं, आवासाणं पि णादव्वा ॥२४॥
प्रावास समत्ता।
णियास-खेतं समत्तं ॥१॥ प्रयं--कट, जिनेन्द्र-भवन, प्रासाद, वेदिका और वन आदि भवनपुरोंके सदृश ही आवासों के भी जानने चाहिए ॥२४॥
आवासों का वर्णन समाप्त हुआ।
इसप्रकार निवास क्षेत्रका कथन समाप्त हुा ।।१॥ ध्यन्तरदेवोंके ( कुल- ) भेद एवं (कुल) भेदोंकी अपेक्षा भवनोंके प्रमाणका निरूपण
किणर-किंपुरुस-महोरगा य गंधव-जक्ख-रक्खसया ।
भूद - पिसाचा एवं, अट्ठ - विहा चेतरा होति ॥२५॥ अर्थ-किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच, इसप्रकार ध्यन्तरदेव आठ प्रकारके होते हैं ॥२५॥
चोद्दस-सहस्स-मेत्ता, भवणा भूदाण रक्खसाणं पि । सोलस - सहस्स - संखा, सेसाणं स्थि भवणाणि ॥२६॥
१४००० । १६०००। वेंतरभेवा समत्ता ॥२॥
१. द. क.ज. पहुँदि ।