Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोय पण्णत्ती
[ गाथा ६१-६४
अर्थ-चन्द्रामा, सुसीमा, प्रभङ्करा और अचिमालिनी, ये उन अग्र- देवियों के नाम हैं । इनमें से प्रत्येक को चार-चार हजार प्रमाण परिवार देवियाँ होती हैं । अग्रदेवियाँ अपनी-अपनी परिवार देवियोंके सदृश अर्थात् चार हजार रूपों प्रमाण विक्रिया दिखलाती हैं। प्रतीन्द्र, सामानिक, लनुरक्ष तीनों पारिषद, सात अतीक, प्रकीर्णक, अभियोग्य और किल्विष इसप्रकार प्रत्येक चन्द्रके आठ प्रकारके परिवार देव होते हैं ।।५८-६० ।।
सलदाण पडदा एक्केक्का होंति ते वि श्राइच्चा | सामाणियतणुरक्ख-प्पहूदी संखेज्ज परिमाणा ॥ ६१ ॥
अर्थ – सब चन्द्र इन्द्रों के एक-एक प्रतीन्द्र होता है। वे ( प्रतीन्द्र ) सूर्य ही हैं । सामानिक श्रीर तनुरक्ष आदि देव संख्यात प्रमाण होते हैं ॥ ६१ ॥
रायंगण - बाहिरए, परिवाराणं हवंति पासादा । विवि- वर- रयण-रवा, विचित्त विण्णास भूदहि ॥६२॥
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अर्थ – राजाङ्गके बाहर विविध उत्तम रत्नोंसे रचित और अद्भुत् विन्यासरूप विभूति ग्रहित परिवार देवोंके प्रासाद होते हैं ||६२ ॥
चन्द्र विमानके वाहक देवोंके आकार एवं उनको संख्या
सोलस - सहरसमेता प्रभिजोग-सुरा हवंति पत्तेक्क ं ।
वाण घरतलाई, विविकरिया साविणो णिच्चं ॥ ६३ ॥
। १६००० ।
अर्थ - प्रत्येक ( चन्द्र ) इन्द्र के सोलह हजार प्रमाण अभियोग्य देव होते हैं जो चन्द्रोंके ग्रहतलों (विमानों ) को नित्य ही विक्रिया धारण करते हुए बहन करते हैं ।। ६३ ।।
चउ-च-सहस्समेत्ता, पुत्रादि- दिसासु कुद-संकासा ।
केसरि-करि-वसहाणं, जडिल - तुरंगाण 'रूबधरा ॥६४॥
अर्थ - सिंह, हाथी, बैल और जटा युक्त घोड़ोंको धारण करने वाले तथा कुन्द पुष्प सदृश सफेद चार-चार हजार प्रमाण देव ( क्रमशः ) पूर्वादिक दिशाओं में ( चन्द्र - विमानों को बहन करते } हैं ॥ ६४ ॥
चन्द्र - विमान का चित्र अगले पृष्ठ पर देखिये !
१. द. ब. क. ज. स्वचरा ।