Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : २७३ ]
पंचमो महाहियारो
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करोड़ पचास लाख योजन अधिक और बावन हजार पाँच सौ योजनोंसे गुणित राजुसे हीन है ।
उसकी स्थापना -
(
(राजू ) * x ३
40
) + १६८७५०००००० वर्ग योजन - राजू x ५२५०० वर्ग यो० ॥
स्वयम्भूरमणसमुद्रका क्षेत्रफल
सयंमूरमणसमुहस्स खेतफलं रज्जूए वग्गं राव-रूवेहि गुणिय सोलस-रूहि भजिदमे, पुणो एक्क-लक्लं बारस सहस्त-पंच-सय-जोयणेहि गुणिद-रज्जू - श्रम्भहियं होइ, पुणो पण्णास लक्ख सत्तासीदि- कोडि - अब्भहिय छस्सय एक्क-सहत्स की जोयह
तस्स ठरणा
परिहोणं होदि । १६८७५००००००।
।। धण ७ t ११२५०० रिण
अर्थ – स्वयम्भूर मरणसमुद्रका जो क्षेत्रफल है उसका प्रमाण राज्के वर्गको नौसे गुणा करके सोलहका भाग देनेपर जो प्राप्त हो उतना होनेके अतिरिक्त एक लाख बारह हजार पाँच सौ योजनोंसे गुणित राजूसे अधिक और एक हजार छह सौ सतासी करोड़ पचास लाख योजन कम है। उसकी
स्थापना
(राजू ) 2 × ९ १६
४ 6
+ ( राजू x ११२५०० वर्ग यो० ) - १६८७५०००००० वर्ग यो० ।
लम्बीणं आणयण - हेतुमिमं गाहा-सुतं
-
तिय- लक्खूपं अंतिम रु णव लक्ख- रहिद आयामो ।
पण्णरस - हिदे संगुण-लद्ध हेटिल्ल-सय- उबहि फलं ॥। २७३३
श्रधस्तन समस्त
समुद्रोंका क्षेत्रफल
अर्थ - इन वृद्धियोंको प्राप्त करने हेतु यह गाथा सूत्र है --
तीन लाख कम अन्तिम विस्तार और नौ लाख कम आयामको परस्पर गुणित करने पर
जो राशि उत्पन्न हो उसमें पन्द्रहका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतना अधस्तन सब समुद्रोंका क्षेत्रफल होता है ।।२७३ ॥
विशेषार्थ - गाथानुसार सूत्र इसप्रकार है
इष्ट समुद्रका विस्तार - ३००००० ) x ( श्रायाम - ९००००० )
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