Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : २८२ ] पंचमो महाहियारो
[ १५५ = सप्रति. प्रत्येक शरीर बन जीवराशि–सप्रति. प्रत्येक बन० जीव राशि = ( = रि = रि) ---( =प.९!:
त्रस जीवोंका प्रमाण प्राप्त करनेकी विधिपुणो आवलियाए असंखेज्जदि-भागेण पदरंगुल-मवहारिय लक्षण जगपदरे भागं घेत्तूण लद्ध - ।
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तं प्रावलियाए असंखेज्जवि-भागेण खंडियूणेगखंड पि पुधं ठविय सेस-बहुभागे घेत्तूण चत्तारि सम-पुजं काव्रण पुधं ध्येयव्य'
प्रयं-पुनः प्रावलीके असंख्यातवें भागसे भाजित प्रतरांगुलका जगत्प्रतरमें भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उसे आवलीके असंख्यातवें भागसे खंडित कर एक भागको पृथक् स्थापित करके और शेष बहुमागको ग्रहण करके उसके चार समान पुञ्ज करके पृथक् स्थापित करना चाहिए।
विशेषार्थ-आवलोके असंख्यातवें भागसे भाजित प्रतरांगुलका भाग जगत्प्रतरमें देने से - लब्ध प्राप्त होता है।
यही सामान्य त्रस-राशिका प्रमाण है । इसमें प्रावलीके असंख्यातवें (1) भागका भाग देना चाहिए । यथा-(-2)।
इसका एक भाग अर्थात् ( = के चार समान पुञ्ज करके पृथक् स्थापित करना
चाहिए । यथा
१.प. ब. क. ज. टुवेमंतये ।