Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : २६६-२६७ ] पंचमो महाहियारो
[ ९७ ६४००८ = [ ( १५६२४४४ )+( ७४४४२ )+२४ ] तम्बड्ढी-प्राणयण-हेतुमिमं गाहा-सुत्तं
अंतिम-विक्खंभद्ध, लक्षणं लक्ख-होण-यास-गुरां ।
पण-घण-कोडोहि हिवं, इट्ठाको हेट्ठिमाण पिंज-फलं ।।२६६।। अर्थ- इस वृद्धि को प्राप्त करने हेतु यह गाषा-सूत्र है
अन्तिम विस्तारके अर्ध भागमेंसे एक लाख कम करके शेष को एक लाख कम विस्तार से गुणा करके प्राप्त राशिमें पाँचके धन अर्थात् एक सौ पच्चीस करोड़ का भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतना इच्छित द्वीप या समुद्रसे अधस्तन द्वीप-समुद्रों का पिण्डफल होता है ॥२६६।।
गाथानुसार सूत्र इसप्रकार है
इष्ट द्वीप या समुद्रसे अधस्तन द्वीप-समुद्रका पिण्डफल... अन्तिम विस्तार .-१००००० ) - ( अन्तिम विस्तार – १००००० ।
१२५००००००० उदाहरण-मानलो- यहाँ क्षीरवर द्वीप इष्ट है । जिसका विस्तार २५६ लाख योजन प्रमाण है।
क्षीरवर द्वीपसे अधस्तन ( जम्बूद्वीपसे वारुणीवर समुद्र पर्यन्त ) द्वीप - समुद्रका पिण्डफल--- पिण्डफल - ( २५६००००० -१००००० ) ( २५६००००० - १०००००
१२५०००००००
१२७०००००४२५५००००० -२५६००० योजन ।
१२५०००००००
सादिरेय-पमाणाणयगढ़ इमं गाहा-सुत्तं
दो-लक्लेहि विभाजिव-सम-सग-वासम्मि लड-हवेहि ।
सम-सग-खंडसलागं, भजिदे अदिरेग - परिमारणं ॥२६७।। अर्थ :- अतिरिक्त प्रमाण प्राप्त करने हेतु यह गाथा-सूत्र है
अपने-अपने विस्तार में दो लाखका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उसका अपनी-अपनी खण्डशलाकात्रों में भाग देनेपर अतिरेकका प्रमाण आता है ।। २६७ ।।