Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : ७२-७६ ]
पंचमो महाहियारो अधिकारकी गाथा १८७९-१८८० में पाण्डुकवन स्थित जिनालयोंकी लम्बाई १०० कोस, चौड़ाई ५० कोस, ऊँचाई ७५ कोस और नींव ३ कोस कही गई है अतः भद्रशालवन एवं नन्दीश्वरद्वीप स्थित जिनालयोंका प्रमाण इससे चौगुना अर्थात् १०० योजन लम्बाई, ५० यो० चौड़ाई, ७५ यो० ऊँचाई और २ यो० की नींव जानना चाहिए।
पूजा, नृत्य और वाद्यों द्वारा भक्ति प्रदर्शन जल-गंध-कुसुम-तंदुल-बर-चर-फल-वीव-धूय-पहवीहि ।।
अच्चंते थुण-माणा, जिणिद-पडिमानो देवा' य ।। ७२ ॥
प्रर्य-इन मन्दिरों में देव जल, गन्ध, पुष्प, तन्दुल, उत्तम नैवेद्य, फल, दीप और धूपादिक द्रव्योंसे जिनेन्द्र प्रतिमानोंको स्तुति-पूर्वक पूजा करते हैं ।। ७२ ॥
जोइसय-वाणवतर-भावण-सुर-कप्पवासि-वीओ ।
णचंति य गायंति य, जिण-भवणेसु विचित्त-भंगोहिं॥७३॥
प्रयं-ज्योतिषी, वानव्यन्तर, भवनवासी और कल्पवासी देवोंकी देवियां इन जिनभवनोंमें अद्भुत रीतिसे नाचती और गाती हैं ।। ५३ ।।
भेरी-महल-घंटा-पहुबोणि विविह-दिम्ब-वजाणि ।
वायंते देववरा', जिणवर • भवणेसु भत्तीए ॥ ७४ ।।
पर्य-जिनेन्द्र-भवनों में उत्तम देव भक्ति-पूर्वक भेरी, मर्दल भोर घण्टा प्रादि अनेक प्रकार के दिव्य बाजे बजाते हैं ।। ७४ ।।
दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा स्थित बापिकाओंके नाम एवं दक्षिण-पच्छिम-उत्तर-भागेसु होति विन्व-वहा ।
णवरि विसेसो णामा, पमिणि-संठाण अण्णाणि ॥७५॥
अर्थ-इसीप्रकार ( पूर्व दिशाके सदृश ही ) दक्षिण, पश्चिम और उत्तर भागोंमें भी दिव्य द्रह हैं। विशेष इतना है कि इन दिशामों में स्थित कमल युक्त वापियोंके नाम भिन्न-भिन्न हैं ।। ७५ ।।
पुन्यादीसु अरजा, विरजासोका य वोक्सोको चि । दक्षिण - अंजण - सेले, चसारो परमिणीसंडा ॥७॥
१. ६. ब. क. ज. देवारिण। २. द. ब. क. ज. देववरो।