Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 17
________________ तत्वार्थचिन्तामाणः न हि सम्यग्ज्ञानमत्र लक्षणीयं तस्यादिश्त्रे ज्ञानशब्दनिरुक्त्यैवाव्यभिचारिण्या लक्षितत्वात्, तद्भेदमाश्रित्य मत्यादीनि तु लक्ष्यंते तनिरुक्तिसामर्थ्यादिति बुध्यामहे । कथं ? इस अवसर पर सम्यग्ज्ञानका लक्षण करना आवश्यक नहीं है, क्योंकि उसका आदिसूत्रमें ही ज्ञान शब्दकी व्यभिचारदोषरहित निरुक्ति करके लक्षण किया जाचुका है। हाँ, उस ज्ञानके भेदोंका आश्रयकर मति, श्रुत, आदिक ज्ञान तो उनकी शद्वनिरुक्तिकी सामर्थ्यसे लक्षणयुक्त होजाते हैं, इस प्रकार हम समझ रहे हैं। तभी तो ग्रन्थकार श्री उमास्वामी महाराजने सम्यग्दर्शनके समान मति आदिकोंके न्यारे न्यारे लक्षण सूत्र नहीं बनाये हैं । शब्दनिरुक्तिका व्यभिचार हो तब तो रूढि अर्थ करना समुचित है, अन्यथा नहीं । मति आदिका शद्वनिरुक्तिसे ही लक्षण कैसे निकलता है ? सो सुनिये मत्यावरणविच्छेदविशेषान्मन्यते यया । मननं मन्यते यावत्स्वार्थ मतिरसौ मता ॥३॥ मति ज्ञानको आवरण करनेवाले कर्मके क्षयोपशमरूप विशेषविच्छेद होजानेसे जिस करके अवबोध किया जाता है वह मति है " मन-ज्ञाने" इस दिवादिगणकी धातुसे करणमें क्तिन् प्रत्यय करके मति शब्द साधा गया है । आत्माका स्व और अर्थकी ज्ञप्तिका साधकतमरूप परिणाम विशेष मतिज्ञान है अथवा मननं मतिः इस प्रकार मन धातुसे भावमें क्ति प्रत्यय कर मति शब्द बनाया गया है। आत्माकी अर्थोका जाननारूप परिणति मति ज्ञप्ति है अथवा मन्यते या सा इति मतिः, जबतक स्वका यानी स्वयं ज्ञानका और अर्थका आत्मा ज्ञान करता है वह आत्माका स्वतंत्रपरिणाम मतिज्ञान माना गया है। इस प्रकार कर्त्ता क्ति प्रत्यय कर स्वतंत्र आत्मा परिणामी मतिज्ञान होजाता है । इन तीन निरुक्तियोंसे पर्याय और पर्यायीकी भेद अभेदविवक्षा होजानेपर स्वतंत्रता, निवर्त्यपना, शुद्ध धात्वर्थरूप आदि परिणतियां घटित होजाती हैं । अतः स्याद्वाद सिद्धान्तमें कोई विरोध नहीं है। देवदत्त हाथसे अपने शिरको दाब रहा है । वृक्ष फलोंके बोझसे शाखाओंको झुका रहा है। आदि स्थानोंपर स्वतंत्रता और परतंत्रताकी विवक्षायें वस्तुपरिणतिके अनुसार होजाती हैं। श्रुतावरणविश्लेषविशेषाच्छ्रवणं श्रुतम् । शृणोति स्वार्थमिति वा श्रूयतेस्मेति वागमः॥४॥ श्रुतज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमरूप विगमविशेषसे श्रवण करना श्रुत है । यह भावमें क्त प्रत्यय करके श्रुत शब्दको साधा गया है। इससे वाच्य अर्थकी शब्दजन्य प्रतिपत्ति करना श्रुतज्ञान पडा । अथवा जो स्वतंत्रतासे स्व और अर्थको संकेत गृहीत किये गये शब्द द्वारा सुनता है वह श्रुत है। यह कर्ता त प्रत्यय कर श्रुत शब्द बनाया जाता है अथवा जो वाच्य अर्थ आप्त वाक्य द्वारा सुना

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