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तत्त्वानुशासन
संसार का सम्यक् परिपालक राजा मोहमल्ल है । इस राजा का प्रधानमन्त्री अज्ञान है । राजा को आज्ञा और आदेश का प्रचार प्रसार व प्रतिपालन कराना मन्त्री के हाथ में होता है । मन्त्री के परामर्शानुसार राजा काम करता है । अतः अज्ञान नामक मन्त्री ने अपनी मिथ्यात्वरूपी काली चादर संसारी प्राणियों पर भली प्रकार से ओढ़ रखी है । जिस प्रकार रंगीन कांच का चश्मा लगाने से सफेद वस्तुएं भी रंगीन दिखलाई पड़ती हैं उसी प्रकार अज्ञानरूपीतिमिर से आच्छादित हृदययुत मानव को यथार्थतत्त्वविपरीत प्रतिभासित होते हैं यह विपर्यास जब तक रहेगा तब तक याथातथ्य आत्मतत्त्वका भान नहीं हो सकता ।
(अनुवादिका आ० विजयामती)
ताभ्यां पुनः कषायाः स्युर्नोकषायाश्च तन्मयाः । तेभ्यो योगाः प्रवर्तन्ते ततः प्राणिवधादयः ॥ १७ ॥ तेभ्यः कर्माणि बध्यन्ते ततः सुगतिदुर्गती । तत्र कायाः प्रजायन्ते सहजानीन्द्रियाणि च ॥ १८ ॥
अर्थ - उन दोनों (राग-द्वेष ) से कषायें होती हैं और नोकषायें कषायरूप ही हैं । उन ( कषाय- नोकषायों ) से योगों की प्रवृत्ति होती है और उससे प्राणिवध आदि ( पाप ) होते हैं । उन ( प्राणिवधादि पापों ) से कर्म बँधते है और उस ( कर्मबन्ध ) से सद्गति एवं दुर्गति प्राप्त होती है । वहाँ ( गतियों में ) शरीर एवं स्वाभाविक रूप से इन्द्रियाँ उत्पन्न होती हैं ।।१७-१८ ।।
विशेष - (१) १२ अविरति, २५ कषाय और १५ योग ये ५७ आगम में आस्रव भाव कहे गये हैं । ६ इन्द्रिय असंयम और ६ प्राणि- असंयम ये १२ अविरति हैं । २५ कषायों में १६ कषाय और ९ नोकषायों का समावेश है । क्रोध, मान, माया एवं लोभ ये चार कषायें अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण एवं संज्वलन के भेद से ४ x ४ = १६ हो जाती हैं । अनन्तानुबन्धो कषाय तत्त्वों का सत्य श्रद्धान नही होने देती है । यह सम्यग्दर्शन को रोकने वाली है । अप्रत्याख्यानवरण के प्रभाव से श्रावक व्रतों को पालन नहीं कर पाता है । प्रत्याख्यानावरण के प्रभाव से श्रावक को महाव्रतादि पालन करने के भाव नहीं होते हैं तथा संज्वलन के प्रभाव से पूर्ण वीतराग भाव यथाख्यातचारित्र नहीं होता है । नोकषाय का अर्थ
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