Book Title: Tattvanushasan
Author(s): Nagsen, Bharatsagar Maharaj
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 157
________________ १२२ तत्त्वानुशासन वाले एक मनोहर कमल का ध्यान करें। फिर उस कमल के सोलह पत्तों पर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, ल, , ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः इन सोलह अक्षरों का ध्यान करें । और उस कमल की कणिका पर "अह" इस महामन्त्र का चिन्तन करें। इसके पश्चात् उस महामन्त्र के रेफ से निकलती हुई धमकी शिखा का चिन्तवन करे। उसके पश्चात् उस महामन्त्र के रेफ से निकलती हुई ज्याला की लपटों का चिन्तन करें। फिर क्रम से बढ़ते उस ज्वाला के समूह से अपने हृदय में स्थित कमल आठ पत्तों का हो, उसका मुख नीचे की ओर हो और उन आठ पत्तों पर आठ कर्म स्थित हों। उस कमल को नाभि में स्थित कमल की कणिका पर विराजमान "ह" से उठती हुई प्रबल अग्नि निरन्तर जला रही है, ऐसा चिन्तन करें। उस कमल के दग्ध होने के पश्चात् शरीर के बाहर त्रिकोण अग्नि का चिन्तन करें। वह अग्नि बोजाक्षर "र" से व्याप्त हो और अन्त में स्वि स्वस्तिक से चिह्नित हो। इस प्रकार वह धगधग करतो हुई लपटों के समूह से देदीप्यमान अग्निमंडल नाभि में स्थित कमल और शरीर को जलाकर राख कर देता है। फिर कुछ जलाने को न होने से अग्नि मण्डल धीरे-धीरे स्वयं शांत हो जाता है। ३. मारुती धारणा ____ ध्यानी पुरुष आकाश में विचरण करते हुए महावेग वाले बलवान वायु मण्डल का चिन्तन करे। फिर यह चिन्तन करे कि उस शरीर वगैरह की भस्म को उस वायुमण्डल का चिन्तन करे। फिर यह चिन्तन करे कि उस शरीर वगैरह की भस्म को उस वायु मण्डल ने उड़ा दिया । फिर ( यह चिन्तन ) उस वायु को स्थिर रूप चिन्तवन करके शान्त कर दे। ( स्वा० का० ) अथवा आग्नेय धारणा के पश्चात् हृदय में कल्पना करे कि सम्पूर्ण नभमण्डल में फैलनेवाली, पृथ्वीमंडल के सम्पूर्ण हिस्सों में पहुँचनेवाली, जोर की वायु बह रही है तथा हृदय में गहान आनन्द का अनुभव करे। फिर विचारे या चितन करे कि उस जोर के बहने वाले वायु समूह के द्वारा अग्नि में जली हुई उस शरीर को भस्म यहाँ वहाँ उड़ा दी गई है। तदनन्तर उस उठ हुए वायुमंडल को सद्ध्यान द्वारा धीरे-धीरे बारहवें स्थान के अन्त स्थान में स्थापित करे फिर सिद्ध भगवान् के स्वरूप का ध्यान करना चाहिये। यह मारुती धारणा है [वै.म. ४२-४३] । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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