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तत्त्वानुशासन अनन्त-धर्म शान्ति-कुन्थु-अर-मल्लि-नमि और महावीर भगवान् का ध्यान करें। मस्तक में सम्मिलित ईकार विशिष्ट नीलवर्ण का है। इसमें नीलवर्ण सुपार्श्वनाथ-पार्श्वनाथ भगवान् का ध्यान करें। इस प्रकार चौबीस तीर्थंकर का वाचक इस ह्रीं का जो ध्यान करता है वह सर्वेष्ट की प्राप्ति कर सर्वरोगोपद्रव को शान्त कर अविनाशी सुख को प्राप्त करता है । मन्त्रों व वर्णमातृका को ध्यान विधि
अनाहत मन्त्र "ह" की ध्यानविधि १-हे मुनीन्द्र ! सुवर्णमय कमल के मध्य में कणिका पर विराजमान, मल तथा कलंक से रहित शरद ऋतु के पूर्ण चन्द्रमा की किरणों के समान गौर वर्ण के धारक आकाश में गमन करते हुए तथा दिशाओं में होते हुए ऐसे श्री जिनेन्द्र के सदश हं मन्त्रराज का स्मरण करे ।
फूल पीतवर्ण "ह" श्वेतवर्ण
धैर्य का धारक योगी कुम्भक प्राणायाम से इस मन्त्रराज को भौंह की लताओं में स्फुरायमान होता हुआ मुखकमल में प्रवेश करता हुआ, तालुओं के छिद्र से गमन करता हुआ तथा अमृतमय जल से झरता हुआ देखे। __नेत्र को पलकों पर स्फुरायमान होता हुआ, केशों में स्थित करता हुआ तथा ज्योतिषियों के समूह में भ्रमता हुआ, चन्द्रमा के साथ स्पर्धा करता हुआ देखे।
दिशाओं मे सँचरता हुआ, आकाश में उछलता हुआ, कलंक के समूह को छेदता हुआ, संसार के भ्रम को दूर करता हुआ तथा परम स्थान (मोक्षस्थान) को प्राप्त करता हुआ ध्यावै ।
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