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तत्त्वानुशासन सात तत्त्व व नौ पदार्थ ध्येय हैं
जिणउवइट्ठणवपयत्था वा ज्झेयं होति । -जिनेन्द्र भगवान् द्वारा उपदिष्ट नौ पदार्थ ध्येय हैं ।
-ध० १३/५. ४. २६/३ अहं ममास्रवो बन्धः संवरो निर्जराक्षयः ।
कर्मणामिति तत्त्वार्था ध्येयाः सप्त नवाथवा ॥१०८।। म. पु. अर्थ-मैं अर्थात् जीव और मेरे अजीव आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा तथा कर्मों का क्षय होने रूप मोक्ष । इस प्रकार ये सात तत्त्व या पुण्य पाप मिला देने से नौ पदार्थ ध्यान करने योग्य हैं।
षड्विध द्रव्यों में जीव द्रव्य उत्तम ध्यान करने योग्य है . पुरुषः पुद्गलः कालो धर्माधर्मों तथाम्बरम् । षड्विधं द्रव्यमाम्नातं तत्र ध्येयतमः पुमान् ॥ ११७ ॥ अर्थ-जीव, पुद्गल, काल, धर्म, अधर्म और आकाश ये छः प्रकार के द्रव्य कहे गये हैं। इनमें जोव सर्वाधिक ध्यान करने योग्य है ।।११७॥
विशेष-वास्तव में द्रव्य दो प्रकार के होते हैं--जीव और अजीव । जिसमें उपयोग एवं चेतना हो, उसे जीव कहते हैं। पूर्ण एवं निर्मल केवलज्ञान और केवलदर्शन शुद्धोपयोग तथा मतिज्ञानादि रूप विकल अशुद्धोपयोग है। अव्यक्त सुख-दुख का अनुभव कर्मफलचेतना, इच्छापूर्वक इष्टानिष्ट विकल्प से होने वाले रागद्वेष परिणाम कर्म चेतना और केवलज्ञान शुद्धचेतना या ज्ञानचेतना है। जीव में उपयोग एवं चेतना है तथा अजीव में ये दोनों नहीं हैं।
जीव की उत्तम ध्येयता का कारण सति हि ज्ञातरि ज्ञेयं, ध्येयतां प्रतिपद्यते ।
ततो ज्ञानस्वरूपोऽयमात्मा ध्येयतमः स्मतः ॥११८ ॥ __ अर्थ--चंकि ज्ञाता के होने पर ही ज्ञेय पदार्थ ध्यान की योग्यता को प्राप्त होता है, इसलिये ज्ञानस्वरूप यह आत्मा सर्वाधिक या श्रेष्ठ ध्यान करने योग्य कहा गया है ।। ११८ ।। __ रंगों के साथ मनुष्य के मन का, मनुष्य के शरीर का कितना गहरा सम्बन्ध है
हमें ज्ञान केन्द्र पर "णम अरहंताणं" का ध्यान श्वेत वर्ण के साथ
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