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तत्त्वानुशासन हे प्राणी ! घृणित, इन्द्रिय विषय रूपी मांस का उपभोग करना तू छोड़ दे, अपने तृष्णा रूपी रोग को दूर हटा, मद से मदोन्मत्त मानस मतंग ( हाथी ) मनरूपी चाण्डाल को ज्ञानांकुश ( ध्यानांकुश ) से वश में कर, अत्यन्त निर्मल स्व आत्मा का ध्यान कर जिससे संसार से पार हो सके।
पूर्व श्रुतेन संस्कारं स्वात्मन्यारोपयेत्ततः । तत्रैका समासाद्य न किञ्चिदपि चिन्तयेत् ॥ १४४ ॥
अर्थ-सर्व प्रथम श्रुतज्ञान के द्वारा अपनी आत्मा में संस्कार करे अर्थात् आत्मा में श्रुतज्ञान का संस्कार करे और तदनन्तर उसमें एकाग्र होकर कुछ भी चिन्तन न करे । १४४ ॥
विशेष-अष्टपाहड में आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी मुनियों को सम्बोधन देते हुए कहते हैं हे मुने! धान की सिद्धि करना चाहते हो तो सार को ग्रहण करो, असार का त्याग करो। सार क्या है असार क्या है ?
आलोचना सार है, आलोचना नहीं करना असार है। परनिन्दा असार है, निज निन्दा करना सार है, गुरु के आगे अपने दोष नहीं कहना असार है, गुरु के आगे दोष कहना सार है, प्रतिक्रमण नहीं करना असार है, प्रतिक्रमण करना सार है, गृहीत व्रतों में दोष लगाना ( विराधना) असार है, आराधना सार है। मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान असार है, सम्यग्दर्शन ज्ञान सार है। मिथ्याचारित्र व कुतप असार है, सम्यक्चारित्र व सुतप सार है। अयोग्य कार्य असार है, योग्य कार्य सार है। प्राणघात असार है, अभयदान सार है, असत्य भाषण असार है, सत्य भाषण सार है । अदत्त ग्रहण असार है, दी हुई वस्तु का ग्रहण सार है। मैथुन असार है, ब्रह्मचर्य सार है। परिग्रह असार है, निर्ग्रन्थपना सार है। रात्रि में भोजन असार है,दिन में एक बार प्रासुक भोजन करना सार है । आत-रौद्र ध्यान असार है, धर्म्य-शुक्लध्यान सार है। कृष्ण, नील, कापोत लेश्या असार है, तेज पद्मशक्ल लेश्या सार है। आरम्भ असार है, अनारम्भ सार है, असंयम असार है, संयम सार है। वस्त्र सहित असार है, वस्त्र रहित सार है। केशलोच सार है, केशलोच नहीं करना असार है । स्नान असार है, अस्नान सार है, क्रोधादि कषायें असार हैं, क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच भाव सार है । अशील असार है, सुशील सार है, शल्य असार है, निशल्य सार है। अमुक्ति संसार असार है, मुक्ति सार है, असमाधि असार है, सुसमाधि सार है। ममत्व असार है, निर्ममत्व सार है -(१०८ गा० सं० टीका)
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