________________
२
.
तत्त्वानुशासन तत्रापि तत्त्वतः पञ्च ध्यातव्याः परमेष्ठिनः ।
चत्वारः सकलास्तेषु सिद्धः स्वामीति निष्कलः ॥११९ ॥ अर्थ-उनमें भी वास्तव में पाँच परमेष्ठी ही ध्यान करने योग्य हैं। इनमें चार तो सशरोरी हैं और सबके स्वामी सिद्ध शरीर रहित हैं ॥११९।।
पंच परमेष्ठी
जोकि
राण
णमो अरिहता
DAI
को मध्यावान
TIMMMU णमोधातरियाणं
णमोलोएसरहण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org