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तत्त्वानुशासन
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प्रणव, शून्य व अनाहत इन तीन अक्षरों को ध्यान विधि प्रणव और शन्य तथा अनाहत ये तीन अक्षर हैं, इनको बद्धिमानों ने तीन लोक के तिलक के समान कहा है। इन तीनों को नासिका के अग्र भाग में अत्यन्त लीन करता हुआ ध्यानी अणिमा-महिमा आदिक आठ ऋद्धियों को प्राप्त होकर, तत्पश्चात् अतिनिर्मल केवलज्ञान को प्राप्त होता है।
नामध्येय का स्वरूप आदौ मध्येऽवसाने यद्वाङ्मयं व्याप्य तिष्ठति । हृदि ज्योतिष्मदुद्गच्छन्नामध्येयं तदर्हताम् ॥ १०१ ॥
अर्थ-आदि, मध्य एवं अन्त में जो वाङ्मय को व्याप्त करके स्थित है ऐसे ज्योतिःस्वरूप अर्हन्तों के नाम का हृदय में ध्यान करना नाम ध्येय कहलाता है ।। १०१ ॥
असिआउसा का ध्यान हृत्पंकजे चतुःपत्रे ज्योतिष्मंति प्रदक्षिणम् । असिआउसाक्षराणि ध्येयानि परमेष्ठिनाम् ॥ १०२ ॥
सा
आ
अर्थ-ज्योतिःस्वरूप और चार पत्रों वाले हृदय रूपी कमल में परमेष्ठियों के अ सि आ उ सा अक्षरों का प्रदक्षिणा रूप से ध्यान करना चाहिये ॥ १०२ ।।
___अ इ उ ए ओ मंत्रों का ध्यान ध्यायेदइउएओ च तद्वन्मंत्रानुचिषः । मत्यादिज्ञाननामानि मत्यादिज्ञानसिद्धये ॥ १०३ ॥ अर्थ-इसी प्रकार मति आदि ज्ञानों को सिद्ध करने के लिए ऊपर की ओर जाज्वल्यमान पाँचों ज्ञानों के नाम (वाचक) अ इ उ ए ओ इन मंत्रों का ध्यान करना चाहिये ॥ १०३ ।।
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