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तत्त्वानुशासन
के द्वारा, स्वयं का, स्वयं में परिज्ञान करती है और मध्यस्थ हो जाती है वही निश्चयनय से मोक्ष का मार्ग है' ऐसा जिनेन्द्र भगवान् का कथन है ॥ ३२॥
विशेष-निश्चयनय के अनुसार परपदार्थों से आत्मा को भिन्न मानकर अपने आप अपनी आत्मा में रुचि करना सो निश्चय सम्यग्दर्शन है। अपने आत्मा के स्वरूप का यथार्थ ज्ञान होना सो निश्चय सम्यग्ज्ञान है और अपने आत्मा में स्थिरता से लीन रहना सो सम्यक्चारित्र है। छहढाला की तोसरी ढाल के दूसरे पद्य में पण्डितप्रवर दौलतराम जी ने सम्यग्दर्शन, ज्ञान एवं चारित्र का निश्चय से ऐसा ही स्वरूप कहा है। यही निश्चय मोक्ष मार्ग है ।।
"पर द्रव्यन भिन्न आप में रुचि सम्यक्त्व भला है, आप रूप को जानपनों सो सम्यक ज्ञान कला है। आप रूप में लीन रहे थिर सम्यक्चारित सोई॥"
-छहढाला ३/२ अर्थात् परम निरपेक्ष रूप से निज परमात्व तत्त्व का सम्यक श्रद्धान उसी परमात्मतत्त्व का सम्यक् परिज्ञान और उसी परमात्मतत्त्व में सम्यक् अनुष्ठानरूप शुद्ध रत्नत्रयात्मक मार्ग निश्चय मोक्षमार्ग है यही मोक्ष का उपाय है और निश्चय मोक्षमार्ग ही शुद्ध रत्नत्रय है इसका फल अपने आत्मस्वरूप की उपलब्धि है।
सर्वज्ञदेव ने योगी पुरुषों का आत्मदर्शन (श्रद्धान) सम्यग्दर्शन, आत्मज्ञान-सम्यग्ज्ञान और स्वरूपाचरणचारित्र में रमण को सम्यक्चारित्र कहा है, यह निश्चय मोक्षमार्ग है, यही स्व-स्वरूपोपलब्धि में साधकतम करण है।
__ ध्यान के अभ्यास का उपदेश स च मुक्तिहेतुरिद्धो ध्याने यस्मादवाप्यते द्विविधोऽपि । तस्मादभ्यसन्तुच्यानं सुधियः सदाप्यपास्यालस्यम् ॥ ३३ ॥ ___ अर्थ-दोनों प्रकार का वह देदीप्यमान मोक्षमार्ग चूंकि ध्यान में ही प्राप्त होता है, इसलिए बुद्धिमान् लोग आलस्य को त्याग कर हमेशा ध्यान का अभ्यास करें, जिससे मुक्ति हेतुओं की प्राप्ति हो सके।
विशेष-(१) द्रव्यसंग्रह में भी यही अभिप्राय व्यक्त करते हुए कहा गया है कि
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