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तत्त्वानुशासन
अर्थ - एकाग्र चित्त से पंच णमोकार मंत्र का जप करना, सबसे बड़ा स्वाध्याय है अथवा जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा उपदिष्ट शास्त्रों का पढ़ना सो भी परम स्वाध्याय कहलाता है ॥ ८० ॥
विशेष – जिण सासणस्स सारो, चउद्दस पुव्वाणं समुद्दारो । जस्स मणे णमोक्कारो, संसारो तस्स किं कुणई ॥
जो जिनशासन का सारभूत है, ग्यारह अंग चौदह पूर्वो का उद्दार रूप है ऐसा णमोकार मंत्र जिसके हृदय में है, संसार उसका क्या कर सकता है ?
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णमोकार मंत्र किसे कहते हैं ? - जिस मंत्र में परमपद में स्थित परम आराध्य देव अरहन्त-सिद्ध- आचार्य - उपाध्याय व साधु परमेष्ठियों को नमस्कार किया जाता है उसे णमोकार मन्त्र कहते हैं । यह मन्त्र अनादिनिधन है । इसमें ५ पद, ५८ मात्राएँ तथा ३५ अक्षर हैं । इस मन्त्र का जाप १८४३२ प्रकार से बोला जा सकता है । भावपूर्वक इस मन्त्र का जाप्य करना सबसे बड़ा स्वाध्याय है तथा जिनेन्द्र कथित, गणधर गूंथित व मुनियों के द्वारा प्रसारित जिनवाणी का वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय और धर्मोपदेश विधि से अध्ययन करना स्वाध्याय है ।
पढ़े हुए ग्रन्थ का पाठ करना, व्याख्यान करना वाचना है, पृच्छनाशास्त्रों के अर्थ को किसी दूसरे से पूछता । अनुप्रेक्षा - बारम्बार शास्त्रों का मनन करना । आम्नाय -- शुद्ध उच्चारण करते हुए पढ़ना । धर्मोपदेशसमीचीन धर्म का उपदेश देकर भव्यात्माओं का मोक्षमार्ग में लगाना ।
णमोकार मन्त्र का एक बार भी भावपूर्वक स्मरण करने वाले ने ग्यारह अंग चौदह पूर्वों का अध्ययन कर लिया है ऐसा समझना चाहिये । ध्यान और स्वाध्याय से परमात्मा का ज्ञान
स्वाध्यायाद्वयान मध्यास्तां ध्यानात्स्वाध्यायमामनेत् । ध्यानस्वाध्याय संपत्त्या
परमात्मा
अर्थ - स्वाध्याय से ध्यान का अभ्यास होता है और ध्यान से स्वाध्याय की वृद्धि होती है । ध्यान एवं स्वाध्याय रूपी सम्पत्ति से परमात्मा प्रकाशित होता है ।। ८१ ॥
प्रकाशते ॥ ८१ ॥
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विशेष - स्वाध्याय को समाप्त कर लेने पर ध्यान करना चाहिये और ध्यान करने से भी ऊब जाने पर स्वाध्याय करने में लग जाना चाहिये,
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