________________
४८
तत्त्वानुशासन विशेष-जिसने मन पर विजय प्राप्त कर लो है ऐसे व्यक्ति के द्वारा नित्य हो हिंसादि पाप रूप कुमार्ग को ओर मुड़ने वाले इन्द्रिय रूपी घोड़े, ज्ञान व वैराग्य रूपो लगाम के द्वारा वश में किये जा सकते हैं अर्थात् मन का जीतने वाला पुरुष ही ज्ञान व वैराग्य की सहायता से इन्द्रियों को अपने वश में कर सकता है।
सम्यग्दृष्टर्भवति नियतं ज्ञानवैराग्यशक्तिः, स्वं वस्तुत्वं कलयितमयं स्वान्यरूपाप्तिमक्त्या । यस्माद् ज्ञात्वा व्यतिकरमिदं तत्त्वतः स्वं परं च, स्वस्मिन्नास्ते विरमति परात् सर्वतो रागयोगात् ।। १३६ ।।
-समयसार कलश सम्यग्दृष्टि के नियम से ज्ञान और वैराग्य शक्ति होती है। क्योंकि यह सम्यग्दृष्टि अपने वस्तुपना यथार्थस्वरूप का अभ्यास करने को अपने स्वरूप का ग्रहण और पर के त्याग की विधि कर "यह तो अपना स्वरूप है और यह परद्रव्य का है ऐसे दोनों का भेद परमार्थ से जानकर अपने स्वरूप में ठहरता है और परद्रव्य से सब तरह राग-द्वेष, त्याग, हिंसादि पापों रूप कुमार्ग का त्याग कर मन इन्द्रिय को विजय करता है । सो यह मन और इन्द्रिय का विजयपना ज्ञान वैराग्य शक्ति के बिना नहीं होता।
चंचल मन का नियंत्रण येनोपायेन शक्येत सन्नियन्तुचलं मनः ।
स एवोपासनीयोऽत्र न चैव विरमेत्ततः ॥ ७८ ॥ अर्थ-ध्यान में जिस आय से चंचल मन को नियंत्रित किया जा सकता हो, उसकी ही उपासना करना चाहिये। उससे विरत नहीं होना चाहिये ।। ७८॥
विशेष-मन की चंचलता का चित्रण करते हुए एक कवि ने कल्पना में अपने सुन्दर शब्दों का गयन किया है
___ मेरा मनवा, कभी तो भागे जल में, कभी तो दौड़े थल में,
गलि ना भगवान की, कैसे रोक गति मन बेईमान की ? इसकी दौड़-मैंने कहा कि चल पूजन कर ले, पर ये बॉम्बे दौड़ गया,
मैंने माला लेकर ढेरा, ये पहुंचा पनघट पे बड़ा है सैलानी ना सोचे अभिमानी बात कल्याण की कैसे रोकूँ"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org