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ताओ उपनिषद भाग ४
चाहे आप जब सुख में हों, तो आप कहेंगे, अभी ठहरो, अभी कोई जरूरत नहीं। प्रार्थना करते हैं तो कुछ मांगने के लिए, स्मरण करते हैं तो कुछ मांगने के लिए।
लाओत्से कहता है, ध्यान रखना, उसका कोई भी उपयोग नहीं हो सकता। और जब तक तुम उपयोग की भाषा में सोचते हो तब तक तुम्हारा उससे कोई संबंध नहीं हो सकता। जिस दिन उपयोग की भाषा बंद और उत्सव की भाषा शुरू, उस दिन परमात्मा से संबंध हो जाता है। फिर चाहे मंदिर जाओ, न जाओ; फिर चाहे उसका स्मरण करो, न करो; फिर चाहे धर्म की ऊपरी व्यवस्था से तुम्हारा नाता बने, न बने; लेकिन जीवन को उत्सव में जो बदल लेता है, वह जीवन को प्रार्थना में बदल लेता है।
'यदि सम्राट और भूस्वामी इस निष्कलुष स्वभाव को शुद्ध रख सकें, तो सारा संसार उन्हें स्वेच्छा से स्वामित्व प्रदान करेगा।'
___ इस तरह के वचन कनफ्यूशियस को ध्यान में रख कर कहे गए हैं। क्योंकि कनफ्यूशियस समझा रहा था सम्राटों को, राजकुमारों को, भूस्वामियों को कि तुम इस तरह से जीओ, इस तरह का व्यवहार करो, इस तरह उठो, इस तरह बैठो; तुम्हारा आचरण, तुम्हारी नीति, तुम्हारा आदर्श ऐसा हो; तुम्हारा जीवन मर्यादा का जीवन हो; सब लोग देखें और तुम्हारे आचरण से प्रभावित हों; तुम्हारा उठना-बैठना भी शाही हो, वह भी साधारण न हो; तभी तुम लोगों के ऊपर स्वामित्व रख सकोगे।
लाओत्से कहता है, यह स्वामित्व झूठा है। लाओत्से कहता है कि यदि सम्राट और भूस्वामी अपने भीतर के निष्कलुष स्वभाव को शुद्ध रख सकें, तो सारा संसार उन्हें स्वेच्छा से स्वामित्व प्रदान करेगा।
यह एक अलग तरह का स्वामित्व है। जो इसलिए नहीं कि तुम्हारे आचरण से कोई प्रभावित होता है, इसलिए भी नहीं कि तुम्हारे व्यवहार से कोई प्रभावित होता है, बल्कि सिर्फ इसलिए कि तुम जैसे हो, तुम्हारा होना ही चुंबक है, तुम्हारा अपना स्वाभाविक होना ही आकर्षण है। पहला जो आकर्षण है, वह चेष्टित है, उसमें हिंसा है, उसमें दूसरे का ध्यान है। दूसरा जो आचरण है, वह चेष्टित नहीं है, वह प्रवाह है। और उसमें हिंसा नहीं है, उसमें दूसरे का । कोई ध्यान नहीं है।
लाओत्से के अनुयायी एक बहुत अनूठी बात मानते रहे हैं। लाओत्से कहता था कि अगर एक गांव में चार आदमी भी मेरी बात समझ जाएं, और चार आदमी भी मेरी बात को समझ कर स्वाभाविक जीने लगें, तो पूरा गांव मैं बदल दूंगा। उन चार आदमियों को गांव में लोगों को बदलने जाने की जरूरत नहीं है। उन्हें किसी से कहने की भी जरूरत नहीं है कि तुम अच्छे हो जाओ। उनकी मौजूदगी लोगों को अच्छा करने लगेगी। वे जहां से गुजरेंगे, वहां उनकी हवा, उनका जादू काम करने लगेगा। और लोगों को कभी यह पता भी नहीं चलेगा कि कौन उन्हें बदल रहा है। क्योंकि लाओत्से कहता है, यह पता चल जाए कि कोई तुम्हें बदल रहा है तो इससे भी प्रतिरोध पैदा होता है।
बाप बेटे को बदलना चाहता है तो बेटा सख्त हो जाता है। पत्नी पति को बदलना चाहती है तो पति सख्त हो जाता है। क्योंकि अहंकार बदला जाना पसंद नहीं करता। कोई पसंद नहीं करता कि कोई आपको बदले। क्योंकि जैसे ही कोई आपको बदलता है, उसका मतलब हुआ कि वह आप जैसे हो उसको स्वीकार नहीं करता; वह आपको प्रेम नहीं करता। आप जैसे हो, अस्वीकृत हो। पहले वह कांट-छांट करेगा, पहले वह आपको अपने अनुकूल बनाएगा
और फिर वह आपको पसंद करेगा। लेकिन दुनिया में कोई भी बदला जाना इसलिए पसंद नहीं करता। इसलिए बाप जब बदलने की कोशिश करता है बेटे को तो भूल करता है। शायद इसी कारण बेटा फिर कभी भी बदला नहीं जा सकेगा। और जब गुरु शिष्य को बदलने की कोशिश करता है तो बाधा खड़ी हो जाती है। जब नेता अनुयायियों को बदलने की कोशिश करते हैं तो अनुयायी नहीं बदलते, अनुयायी भी फिर नेता को बदलने की कोशिश में संलग्न हो