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ताओ उपनिषद भाग ४
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और आप समझ लेना कि वह गोली वाला आपको समझा लेगा आज नहीं कल। इस मुल्क को मैं मानता हूं कि जिस दिन भी इस मुल्क को एल एस डी और मारिजुआना की पूरी खबर हो जाएगी, यह मुल्क ध्यान और प्रार्थना करना बंद कर देगा। क्योंकि यहां जितने लोग मेरे पास आते हैं ध्यान की पूछने, वे सब ध्यान को साधन की तरह पूछ रहे हैं। उनका जो तर्क है वह गलत है। उस गलत तर्क का परिणाम खतरनाक है।
समझें, एक आदमी उपवास कर रहा है। वह कर रहा है उपवास इसलिए कि उपवास से शांति होगी, आनंद होगा, या प्रभु-दर्शन होगा, या आत्म-साक्षात्कार होगा। लेकिन फिजियोलाजिस्ट है, शरीरशास्त्री है, वह समझाता है कि आप कर क्या रहे हैं, उपवास में कर क्या रहे हैं आप? यह तो एक शारीरिक काम है; आप कुछ खाना ले रहे थे, वह आपने बंद कर दिया। कुछ रासायनिक तत्व आपके शरीर में जा रहे थे, वे अब नहीं जा रहे। तो आपके शरीर के भीतर जो रासायनिक व्यवस्था थी उसमें असंतुलन पैदा हो रहा है। कुछ तत्व जो जा रहे थे, बंद हो गए; कुछ तत्व जो इकट्ठे थे, शरीर उनको रोज पचा लेगा। तो आपके भीतर रासायनिक व्यवस्था बदल जाएगी। वह कहता है, आप इतनी मेहनत क्यों कर रहे हैं। तीन महीने में आप व्यवस्था बदल पाएंगे, वह व्यवस्था हम एक इंजेक्शन से बदल देते हैं। उसका तर्क बिलकुल साफ है, और जिसमें थोड़ी भी बुद्धि है उसकी समझ में आ जाएगा। आखिर उपवास करेगा क्या ? तीन महीने के लंबे उपवास में आपके शरीर की रासायनिक व्यवस्था बंदल जाएगी। जो व्यवस्था तीन महीने के उपवास से पैदा होगी वह एक इंजेक्शन से अभी हो सकती है, तो फिर हर्ज क्या है? फिर आपके पास कोई दलील नहीं है; क्योंकि उपवास साधन था। लेकिन अगर यही बात महावीर को कही जाए तो महावीर कहेंगे कि मुझे उपवास के बाहर कुछ पाना नहीं है। उपवास आनंद है, उसकी कोई उपयोगिता नहीं है।
मीरा नाच रही है, आनंदित हो रही है। वह जितनी आनंदित हो रही है, नाच रही है, आपसे कोई कहे कि यह नाचना, यह आनंदित होना, यह तो एक मेस्कलीन की गोली से हो जाए, एल एस डी का एक इंजेक्शन दे दिया जाए और हो जाए, आप इसी तरह नाच सकते हैं।
अल्डुअस हक्सले जैसे विचारशील आदमी ने भी यह कहा है कि कबीर और दादू को जो अनुभव हुआ होगा, वह अनुभव मुझे एल एस डी से हुआ है। कबीर को जो अनुभव हुआ होगा, वह मुझे एल एस डी से हुआ है। फर्क कबीर और मेरे अनुभव में इतना ही है कि कबीर को आधुनिक ढंग का पता नहीं था; वे पुराने बैलगाड़ी के रास्ते से सालों की मेहनत कर रहे थे और मुझे आधुनिक ढंग का पता है।
ठीक है, अगर आप बंबई ही आना चाहते हैं कलकत्ते से और बैलगाड़ी में बैठना, इसीलिए बैठे हैं आप बैलगाड़ी में कि बंबई पहुंचना है, तो फिर हवाई जहाज से आने में हर्ज क्या है? फिर आप नासमझ हैं अगर आप कहते हैं कि नहीं, हम तो बैलगाड़ी से ही जाएंगे। बैलगाड़ी या हवाई जहाज में फर्क फिर आपको नहीं करना है। फिर तो उचित यही है कि बैलगाड़ी से ज्यादा उपयोगी है हवाई जहाज।
लेकिन जो आदमी कहता है, बंबई पहुंचने का सवाल नहीं है, बैलगाड़ी में होने में आनंद है, उसके लिए फर्क हो गया। वह हवाई जहाज के लिए राजी नहीं होगा। वह कहेगा कि बैलगाड़ी में होने का एक आनंद है जो हवाई जहाज में नहीं हो सकता। सच तो यह है कि हवाई जहाज में यात्रा होती ही नहीं । यात्रा हो कैसे सकती है हवाई जहाज में! आप एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच जाते हैं, बीच की जगह तो गिर जाती है। यात्रा तो बैलगाड़ी में ही होती है, क्योंकि एक-एक पौधा, जमीन का एक-एक टुकड़ा, सब आपके पास से गुजरता है, आप उसके पास से गुजरते हैं। हवाई जहाज यात्रा नहीं है; यात्रा से बचने का उपाय है। वह जो यात्रा थी बीच में, उसको गिरा देना है, हटा देना है । कलकत्ता और बंबई दो बिंदु हो जाते हैं; बीच से सब गिर जाता है। आप कलकत्ता से सीधे बंबई होते हैं। अगर कल कोई और उपाय हो सके, जो और शीघ्रगामी हों, तो हम उनका उपयोग करेंगे।