Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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वर्ष सप्तशते चैव उमास्वामिमुनिजातिः
वीरं निर्वाण संवत् 770 में उमास्वामी मुनि हुए, तथा उसी समय कुन्द - कुन्दाचार्य भी हुए । नन्दिसंघ की पट्टावलि में बताया है कि उमास्वामी 40 वर्ष 8 महिने आचार्य पद पर प्रतिष्ठित रहे। उनकी आयु 84 वर्ष की थी और विक्रम संवत् 142 में उनके पट्ट पर लोहाचार्य द्वितीय प्रतिष्ठित हुए। प्रो. हार्नले, डा. पिटर्सन और डा. सतीशचन्द्र ने इस पट्टावलि के आधार पर उमास्वामी को ईसा की प्रथम शताब्दी का माना जाता है।
आचार्य उमास्वामी एक प्रवृद्ध, प्रज्ञाधनी, बहुशास्त्रज्ञ, आगमज्ञ, संस्कृत के प्रकाण्ड तलस्पर्शी विद्वान्, तार्किक तथा बहुआयामी तत्वज्ञ साधक तथा लेखक थे । इसलिये उनके लिए कहा गया है
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सप्तत्या च विस्मृतौ । कुन्दकुन्दस्तथैव
च ॥
तत्वार्थ सूत्रकर्त्तारं
वन्दे
गृद्धपिच्छोपलक्षितम् । गणेन्द्रसंजातमुमास्वामीमुनीश्वरम् ॥
तत्त्वार्थ सूत्र के कर्त्ता, गृद्धपिच्छ से युक्त, गणीन्द्र संजात, उमास्वामी मुनीश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ।
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न ताल्लुक के एक दिगम्बर शिलालेख नं. 46 में लिखा है
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तत्वार्थसूत्रकर्त्तारमुमास्वातिमुनीश्वरम् । वन्देऽहं
श्रुतकेवलिदेशीयं
गुणमन्दिरम् ॥
इस तत्त्वार्थ सूत्र के कर्त्ता का नाम उमास्वाति बतलाया गया है और उन्हें श्रुतवलीदेशीय लिखा है । सम्भवतः 'गणीन्द्र संजात' का मतलब भी श्रुतकेवली देशीय ही जान पड़ता है।
श्रवणबेलगोला के शिलालेखों में यह श्लोक पाया जाता है
अभूदुमास्वातिमुनीश्वरोऽसावाचार्यशब्दोत्तरगृद्धपिच्छः । तदन्वये तत्सदृशोऽस्ति नान्यस्तात्कालिकाशेषपदार्थवेदी ॥ कुन्दकुन्द के वंश में गृद्ध पिच्छाचार्य उमास्वामी मुनीश्वर हुए। उस समय
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