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___ सूक्तरत्नावली / 13
हम उनके पढ़ने और देखने में अधिक रसलेते हैं। इनके दर्शन और प्रदर्शन से हमारी जीवनदृष्टि ही विकृत हो चुकी है, आज सच्चरित्र व्यक्तियों एवं उनके जीवन वृत्तान्तों की सामान्य रूप से इन माध्यमों के द्वारा उपेक्षा की जाती है। अत: नैतिक मूल्यों और सदाचार से हमारी आस्था उठतीजा रही है।
इस विकृत परिस्थिति में यदि मनुष्य के चरित्र को उठाना है और उसे सन्मार्ग एवं नैतिकता की ओर प्रेरित करना है, तो हमें अपने अध्ययन की दृष्टि को बदलना होगा । आज साहित्य के नाम पर जो भी है, वह पठनीय है, ऐसा नहीं है। आज यह आवश्यक है कि सत्साहित्यका प्रसारण हो और लोगों में उसके अध्ययनकी अभिरुचि जागृत हो। सत्साहित्य और सूक्ति
सत्साहित्य की विविध विधाओं में उपदेशात्मक गाथाओं और सूक्तियों का अपना महत्त्व है। ये गाथाएँया सूक्तियाँ अति संक्षेप में गहन तथ्यों को प्रकाशित करने में समर्थ होती हैं। इनके माध्यम से अल्पस्वाध्याय से भी व्यक्ति उन सारभूत तथ्यों को पा लेता है, जो उसके जीवन के विकास एवं मूल्यनिष्ठा में सहायक होते हैं। यदि व्यक्ति नियमित रूप से सत्साहित्य की पाँच गाथाओं या श्लोकों का भी पठन एवं चिन्तन करे, तो उसके जीवन की दिशा बदल सकती है। कहा भी है
सतसैया के दोहरे,ज्योंनाविक के तीर।
देखनमें छोटन लगे,घाव करे गम्भीर॥ . प्रस्तुत कृति 'सूक्तिरत्नावली' भी ऐसी ही एक कृति है, जिसमें उदात्त जीवन मूल्यों का प्रस्तुतीकरण हुआ है। आज मानवीय सभ्यता के विकास का कोई अच्छा माध्यम हो सकता है, तो वह सत्साहित्य का पठन-पाठन है। इसी से मानव जाति में उदात्त जीवन-मूल्यों की प्रतिष्ठा हो सकती है।
किन्तु आज सबसे प्रमुख कठिनाई यह है कि हमारा सत्साहित्य मूलत: संस्कृत, प्राकृत और पाली भाषा में निबद्ध है और जनसामान्य इन भाषाओं को नहीं जानता है। इसलिए उसका हिन्दी, अंग्रेजी या अन्य लोकभाषाओं में अनुवाद आवश्यक है। इसी तथ्य को दृष्टिगत रखकर साध्वी रुचिदर्शनाश्रीजी ने आचार्य विजयसेन द्वारा उचित सूक्तिरत्नावली का यह हिन्दी अनुवाद किया है।
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