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32 / सूक्तरत्नावली
अवसर पर तुच्छ वस्तु भी श्रेष्ठ मानी जाती है। जैसे भीषण गर्मी में रस से युक्त आम भी उपयोगी माना जाता है । तुच्छाहारेऽपि तुच्छानां विषयेच्छा महीयसी । दृषत्कणमुजोऽपि स्युः, कपोताः कामिनो बहु ।। 79 ।।
तुच्छ लोगो का आहार शुद्ध होने पर भी उनकी विषय इच्छा अधिक होती है। पत्थर के कण खाने पर कबूतर अधिक कामी होता है । धिग् नैःस्व्यं यद्वशान्नाथं त्यजन्त्यपि मृगीदृशः । ईशमाशाम्बरं हित्वा, जाह्नवी जलधिं ययौ ।। 80 ।।
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धिक्कार है! दरिद्रता को जिसके कारण पत्नि भी पति को छोड़ देती है। जैसे गंगा नदी दिगम्बर शंकर को छोड़कर समुद्र में चली गई। साधारणेऽपि सम्बन्धे, क्वाऽपि स्यात् प्रेम मानसम् । रोहिण्या एव भर्तेन्दु- र्न्यक्षऋक्षाऽधिपोऽपि यत् । । 81 ।।
सामान्य सम्बन्ध होने पर भी कभी-कभी (भाग्यवश ) हार्दिक प्रेम हो जाता है । कहाँ तो दरिद्र रोहिणी नक्षत्र और कहाँ नक्षत्राधिपति चन्द्रमाँ, फिर भी उनमें हार्दिक प्रेम कभी-कभी दिखलाई पड़ता है। मान्यन्ते गुणमाजोऽपि न विना विभवं सखे ! | पतिताः पांशुभिः पूर्णे, पथि पर्युषिताः खजः । । 82 1 1
हे सखि ! गुणवान व्यक्ति भी ऐश्वर्य के बिना नहीं माने जाते है। जीर्ण हुई म्लान पुष्पों की माला मार्ग में पड़ी हुई होती है । रसिकेषु वसन् वेत्ति, कठोरात्मा न तद्रसम् । स्तनोपरि लुठन् हार, - स्तद्रसं नोपलब्धवान् ।। 83 ।।
रसिको के साथ में रहते हुए भी कठोर व्यक्ति उसे नहीं जान पाता है । जैसे स्तन के उपर रहा हुआ हार उस रस को प्राप्त नहीं कर सकता है।
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