________________
सूक्तरत्नावली / 55
प्रभा वाले व्यक्तियों के होने पर भी कलावान व्यक्ति का विशेष महत्त्व होता है। सूर्य और चन्द्रमाँ के होने पर अन्य कोई चमकता दिखाई नहीं देता है। एकाऽन्वयभुवोऽपि स्युः, शुद्धाः पूज्या न चेतरे। गोजातमपि मान्यं यद, गोरसं न च गोमयम्।।194 ।।
एक ही गौत्र के होने पर भी पृथ्वी पर शुद्ध व्यक्ति पूजे जाते है। और (अन्य) नहीं। गाय से उत्पन्न दूध मान्य होता है गोबर नहीं।
रसिकैरेव बुद्धयन्ते, रसिकानां गिरः सखे !। ध्रियन्ते वसुमत्यैव, यत्पयांसि पयोमुचाम्।। 195 ||
रसिक व्यक्तियों की वाणी रसिक व्यक्तियों द्वारा ही जानी जाती है। बादलों का पानी पृथ्वी ही धारण करती है। तुल्येऽपि विषयोल्लेख, आकृतिस्तु बलीयसी। पुंसामेवाग्रहः स्त्रीषु, न तासां तेषु चाभवत्।। 196 ।।
विषय के समान होने पर भी वस्तु की आकृति अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। स्त्रियों के समान होने पर भी सुंदर आकृति वाली स्त्री, पुरुष के हृदय मे अपना स्थान बना लेती है। . समानेऽपि हि संबन्धे, निजाथों बलवत्तरः। पाल्याः पुत्रे महिष्याश्च, पुत्र्यां यत् प्रेम मानसम्।।197 ।।
पत्नि पुत्र वेश्या मे समान सम्बन्ध होने पर मन में प्रेम तो होता है किंतु स्वयं का स्वार्थ अपेक्षाकृत बलवान् होता है।
मानोन्नता न मुंचन्ति, स्वं मानं प्रहृता अपि। नतौ नलिननेत्राया, न स्तनौ निहतावपि।। 198।।
अभिमान से उन्नत व्यक्ति प्रहार होने पर भी मान को नहीं छोड़ता है। नीलकमल के समान नेत्रवाली कामिनी की छाती पर स्थित
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org