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60 / सूक्तरत्नावली
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. स्वजाति के पीड़ित होने पर नीच व्यक्ति भी खिन्न होते हैं। कौए . के मर जाने पर अन्य कौएँ आवाज करते हुए क्या पास नहीं आते ? स्वजातिमेव निघ्नन्ति, नूनं जडनिवासिनः । आकर्णिताः सकणे किं, न मीनाः स्वकुलाशिनः? ||218||
वास्तव में मूर्ख के साथ रहने वाला व्यक्ति अपनी ही जाति का नाश करता है। क्या ज्ञानियों द्वारा नहीं सुना गया कि, जल मे रहने वाली मछली अपने ही कुल का नाश करती है। निवसन्तीं वयं विद्मः, सवित्रीनेत्रयोः सुधाम्। दुग्धपानं विना कूर्म्याः, प्राणन्त्यर्भा निभालनैः।।219 ।।
हम जानते है कि, माता के नयनों मे सदा अमृत ही बसता है। कछुओं का बच्चा दुग्ध पान के बिना अपनी माता की दृष्टि से ही जीवित रहता है।
आदयस्तिष्ठतु तत्पार्श्व,-मपि तेजस्वि तेजसा। श्रीददिग्वर्तिमूर्तिः किं, भानुमान्नातिदुःसहः? ||220 ।।
तेजस्वी व्यक्ति के पास बैठा व्यक्ति भी तेज से सम्पन्न हो जाता है। उत्तर दिशा में स्थित चमकती हुई कुबेर की मूर्ति क्या अतिदुःसह्य नहीं होती है ?
रसाढ्या मध्ये मृदवः, स्युर्बहिः कर्कशा अपि। किमीदृक् क्वाऽपि केनाऽपि, नालोकि कदलीफलम्? | 21 ||
महान व्यक्ति अंदर से रस से पूर्ण अर्थात् कोमल होते हैं और - बाहर से कठोर होते हैं। इस तरह का केले का फल क्या कहीं किसी के द्वारा नहीं देखा गया ? ददतो नात्मनो वित्त, व्ययं ध्यायन्ति दानिनः। स्वनाशो रम्भयाऽचिन्ति, किं फलोत्सर्जनक्षणे? ||222 ||
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