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momson
सूक्तरत्नावली / 81
करोति गुणवाने वो,-पकारं सर्वदा सखो !। ग्रीष्मे प्रावृषि शीते च, त्राणकृत् पट एव यत्।। 321 ||
हे सखे ! गुणवान् व्यक्ति तो हमेशा उपकार ही करता है। ग्रीष्मऋतु एवं शीतऋतु में कपड़ा ही रक्षण करने वाला होता है।
ज्योतिष्मांश्छिद्रलीनोऽपि, स्यादणूनां प्रसिद्धये। यज्जालान्तरगे भानौ, ज्ञायन्ते रेणवोऽणवः ।। 322||
ज्योतिमान् छिद्र से युक्त होने पर भी सूक्ष्म अणुओं की प्रसिद्धि करता है। सूर्य के उदय होने पर छिद्र अथवा खिड़की से आने वाला प्रकाश धूल के कणों का ज्ञान कराता है।
लघीयसाऽपि सुहृदा, मिलितेन बलोन्नतिः। फूत्कारेण हि सप्तार्चिः प्राणपुष्टिं बिभर्ति यत्।।323।। __ मित्र चाहे छोटा भी हो उसके मिलने से हमारे आत्मबल की उन्नति होती है। ठीक उसी प्रकार छोटी सी फूत्कार भी अग्नि की प्राणपुष्टि (प्रज्वलित) करने वाली होती है।
क्वचिदाहलादयेद्विश्व,-मपि जाड्यं कलावताम् । मुदे निशि न किं ग्रीष्मे, शीता अपि विधोः कराः?||324|| ____ कभी-कभी कलावान् व्यक्तियों की शीतलता भी विश्व के आह्लाद के लिए होती है। ग्रीष्म ऋतु की रात्री में चन्द्रसाँ की शीतल किरणें क्या प्रसन्नता के लिए नहीं होती है ?
सुखचिह्नमपि स्थाना,-ऽभावाद् भवति कुत्सितम्। हसन् बाढस्वरेण स्या,-दपमानपदं पुमान्।। 325 ।।
उचित अवसर के अभाव में सुख का प्रतीक भी दुखदाई हो जाता है। ऊँचे स्वर में अट्टहास करना लोगों के अपमान का कारण हो जाता है।
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