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84 / सूक्तरत्नावली के बिना क्या अंगुठा कार्य करने में समर्थ है ? अर्थात् नहीं।
गतामवस्था मा ध्याय, राज्ञि व्रतिनि योषिति। कौशेया भोजपूर्वा यत्, कृमिकर्दमलोमजाः ।। 336|| - रेशम का उपयोग करने से पूर्व यह विचार नहीं किया जाता है कि, वह कीड़ों से, कर्दम से अथवा रोम से उत्पन्न हुआ है। उसी प्रकार रानी बन जाने पर अथवा स्त्री के व्रत धारण करने पर बीति हुई अवस्था का चिन्तन नहीं करना चाहिए।
अपि पूर्वसुखं गच्छ,-त्युत्सवेऽप्यमहात्मनाम् । दत्तहर्षासु वर्षासु, नाऽर्काणां किमपत्रिता।। 33711
उत्सव के बीत जाने पर अज्ञानी व्यक्तियों के सुख भी चले जाते हैं। वर्षा के बीत जाने पर अर्क के वृक्ष क्या पत्तों से विहीन नही हो जाते ? पापवान् संगतः पापैः, स्यान्महानर्थकारणम्। खरैरुत्थापितः पांशु-विशेषात् किं न पुण्यहृत्? ||338 ।।
पापी व्यक्ति पाप के संग से महान् अनर्थ का कारण होता है। गधे के द्वारा उड़ायी हुई धूल क्या विशेष पुण्य को नहीं हरती है ?
अव्यक्ता अपि हृष्यन्ति, संरावरसशीलिताः। जहाति जननीगीतै, न किं रुदितमर्भकः ? ||339 ||
रस से युक्त वाद्य की ध्वनि अव्यक्त होते हुए भी प्रसन्नता देती है। माता के गीतगान से क्या बच्चा रोना नहीं छोड़ देता है ? विधत्ते कृत्यमुराणां, तुच्छोऽपि तत्परिच्छदः । न हि फेनस्य सन्तुष्टिः, स्यात्तदीयैस्तुषैरपि !||340।। ... उत्तेजित व्यक्तियों के कार्य तुच्छ व्यक्तियों द्वारा भी ढुक जाते है। झाग की सन्तुष्टि उसके तुष के द्वारा नहीं होती हैं।
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