Book Title: Suktaratnavali
Author(s): Sensuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 130
________________ 128 / नन्दनमुनिकृत आलोचना 37. दुष्कर्मगर्हणां जन्तुक्षामणां भावनामपि । चतुःशरणंच नमस्कारं चानशनं तथा।।37।। दुष्कर्मो की निन्दा सभी जीवों के प्रति क्षमाभाव, चार शरण का स्वीकार पंचपरमेष्ठि को नमस्कार, अनशन व्रत ग्रहण 38. एवमाराधनां षोढा स कृत्वा नन्दनो मुनिः । धर्माचार्यानक्षमयत्साधून साध्वींश्च सर्वतः ।।38।। और सभी धर्माचार्यो एवं साधु साध्वियों से क्षमापना कर नन्दन मुनि ने ऐसी छः प्रकार की आराधना की। 39. एवमाराधना षोढा कर्तव्या शयने सदा । आयुः पर्यन्त समये विशेषाद् भवभीरुभिः ।।39।। यह छः प्रकार की आराधना हमेशा शयन के समय भी करना चाहिये किन्तु आयु के अन्त समय में तो संसार से भयभीत जीवों को विशेष रुप से करना चाहिए। 40. नित्यमेव सुधी: साम्यश्रद्धासंशुद्ध मानसः । क्षणभङ्गुर संसारे कुर्यादाराधनामिति॥40॥ क्षणभङ्गुर संसार में ज्ञानीजन श्रद्धापूर्वक एवं शुद्ध मन से नित्य ही ऐसी आराधना करते हैं। OBORROBORORSCORPORATORROOOOOOOOOOOOOOOBSORBOSSROONDOB00000000000000000RRBOORNSOONOB683800000000000000000000000dence Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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