________________
90 / सूक्तरत्नावली हैं। टूटा हुआ स्वर्णकलश सन्धि के द्वारा पुनः जुड़ जाता है।
गते प्रसिद्धिमूलेऽपि, गुणे सा स्यात् प्रभामृताम। सहस्त्रपात्त्विषां प्रेयान्, पादहीनोऽपि संमतः ।। 367 ||
प्रकाशवान् व्यक्ति के मूलगुण चले जाने पर भी वह प्रसिद्धि प्राप्त करता है। सूर्य किरणों से हीन हो जाने पर भी सम्मानित होता है।
खेदिता अपि संशुद्धाः, स्युः परस्परसंगताः। मर्दिता अपि किं नोर्ण,-तन्तवो मिलिता मिथः? ||368 ।।
दुखी होने पर भी पवित्र आत्मा व्यक्ति परस्पर मिलकर रहते हैं। ऊन को मसलने पर भी क्या तन्तु परस्पर मिले हुए नहीं होते हैं ?
दत्तं ज्योतिष्मते वित्तं, सद्यः संपद्यते श्रिये । द्राग्दीपो निहिते हे, वस्तुवातं प्रकाशयेत् ।।369 ।।
पुण्यवान् व्यक्ति को कल्याण के लिए दिया हुआ धन शीघ्र ही समृद्ध होता है। दीपक में घी रख देने पर वस्तु समूह शीघ्र ही प्रकाशित हो जाता हैं। (दिखलायी पड़ जाता है) । कुपात्रे निहिते शास्त्रे, नाधाराधेययोः शुभम् । कुम्भेऽप्यामे जले न्यस्ते, नाशः स्यादुभयोरपि।।370 ।।
कुपात्र को शास्त्र का ज्ञान होने पर वह आश्रय-आश्रयी दोनों के लिए शुभ नहीं होता है। कच्चे घड़े में पानी रखने पर घड़े और पानी दोनों का ही नाश होता हैं।
नाप्नोति द्युतिमान् मानं, विना संग लघीयसाम्। विना गुञ्जातुलां मूल्यं कवचित् कांचनमर्हति? ||37111 ___ छोटे व्यक्तियों के सहयोग बिना प्रकाशमान व्यक्ति भी मान को प्राप्त नहीं करते है। गुंजतुला (एक माप) के बिना स्वर्ण मूल्य के योग्य नहीं होता है।
50000ooooop000000000000
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org