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__सूक्तरत्नावली / 95
तुंगेष्वपि विना दोषै, न गुणाः स्थैर्यधारिणः। वालैरपि विना मौलौ, पुष्पाणां किमवस्थितिः? ||392।।
उच्च व्यक्ति होने पर भी दोषों के बिना गुण दृढ़ता से धारण नहीं किये जा सकते। मस्तक पर बालों के बिना फूलों की स्थिति (वैणी के रूप में रहना) कितनी होती है ? प्रस्तावो चितवाक्ये न, कटु वागपि मान्यते । प्रस्थितैर्वामतः कूजन्, यत् काकः कीर्त्यतेऽनघः।।393 ||
उचित अवसर पर कटुवचन बोलने वाला व्यक्ति भी मान्य होता है। प्रस्थान के समय बाँयी तरफ कौए का बोलना शुभ माना जाता है। भवेत्तेजस्विनां प्रायो, गुणस्तेजस्विनिर्मितः। दीपे चक्षुष्मतामेव, वस्तुजातं प्रकाश्यते(०शते) ||394 ।।
प्रायः तेजस्वी व्यक्तियों के गुण तेजस्वी के द्वारा ही निर्मित होते है। सूर्य के उदय होने पर आँखों वाले व्यक्ति को ही वस्तु दिखाई देती
अनर्थ तनुते तुंगो, हसन् मनसि निष्ठुरः । तेजः स्तोमं वहन् वक्त्रे, न कुन्तः किमु मृत्यवे? ||395 ।।
उच्च व्यक्ति का अनर्थ होने पर निष्ठुर व्यक्ति मन में प्रसन्न होता है। तीव्र भाला मुख में तीक्ष्णता रखता हुआ क्या मृत्यु के लिए नहीं होता है ? नाप्रस्तावे वदन् वाक्यं, मान्यते मञ्जुगीरपि। गर्जन्नम्मोधरश्चारु, रोहिण्यां श्लाघ्यते न यत् ।।39611
. अवसर के बिना बोली गई सुंदर वाणी भी मान्य नहीं होती है। रोहिणि नक्षत्र में बादलों की सुंदर गर्जना भी प्रशंसनीय नहीं होती है।
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