Book Title: Suktaratnavali
Author(s): Sensuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 116
________________ 114 / सूक्तरत्नावली पालन) विज्ञान (विशिष्ट ज्ञान) एवं विश्ववल्लभता (सर्वप्रियता) ये सभी पुण्य रुपी लता के सुपुष्प परिगणित हैं। यद्राज्यं न्यायसम्पन्न, यच्छक्तिः शमशालिनी। यौवनं शीलरम्यं य, त्तत्दुग्धं शर्करान्वितम्।। 481।। नीति सम्पन्न राज्य समता से परिपूर्ण शक्ति, शील युक्त यौवन ये तीनों शंकर- सम्मिश्रित दुग्ध के तुल्य कहे गये हैं। यद्वक्ता धर्मशास्त्रज्ञो, यत्कविः सत्यभाषकः । वल्लभो यद्विनीतात्मा, स शंखः क्षीरपूरितः।।48211 - धर्मशास्त्रों का परिपूर्ण ज्ञान रखने वाला वक्ता, सत्य बोलने वाला यथार्थ एवं निरपेक्ष भाव से काव्य रचनाकार कवि, विनीत व्यक्ति या ये तीनों क्षीर से परिपूर्ण शंख (धवलता का सूचक) के समान माने जाते हैं। स्थाने स्थितिमतिर्मान्या, रम्यं रूपं धनं घनम्। बलं बहु वचो वर्य, पुंसां पुण्यवतां भवेत्।। 483।। पुण्यशाली व्यक्तियों को अपने स्थिर निवास का सेवन, सर्वमान्यबुद्धि, सुन्दर रूप, विपुल धन सम्पत्ति, अतुलबल एवं श्रेष्ठवाणी प्राप्त होती हैं। सौजन्यं संगतिः सद्भिः, शान्तिरिन्द्रियसंयमः। आत्मनिन्दा परश्लाघा, पन्थाः पुण्यवतामयम्।। 484|| सज्जनों के साथ समागम, शान्ति (मानसिक परितोष) इन्द्रियों का निग्रह, स्वयं की निन्दा करने का स्वभाव एवं दूसरों की वास्तविक प्रशंसा (गुणानुकीर्तन) ये सब भाग्यशाली व्यक्ति के जीवन पथ (जीवन शैली) कहे गये हैं। करे दानं हृदि ध्यानं, मुखे मौनं गृहे धनम् । तीर्थे यानं गिरि ज्ञानं, मण्डनं महतामिदम्।। 485 ।। SOUDHATHODONOMAMRODAMONTROOPOROPORTINORPORAONOMMODOODURISO9000000000000000000000000000000000000000000RABSONGSD88088600DBAHRADD888888888888888OTOS Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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