________________
66 / सूक्तरत्नावली
. कदाचित् नीच व्यक्तियों को शिक्षा भी दी जाय तो वह भी गुणों को नष्ट करने वाली होती है। जैसे कम्बलों का प्रक्षालन उनके शीघ्र विनाश के लिए ही होता है।
न सत्संगगुणारोपः शुद्धे ऽप्यधमवंशजे । किं बिम्बावस्थितिः क्वापि, भवेत् स्वचछेऽपिकम्बले? 1247 ।। ___ अधमवंश मे उत्पन्न हुए शुद्ध व्यक्तियों में भी सज्जनों का संग एवं गुणों का आरोपण नहीं होता है। कम्बल स्वच्छ होने पर भी क्या शीशे मे रखा जाता है?
शुद्धात्मानो विधीयन्ते, नाऽधमैः स्वसमाः समे । कम्बौ किमितरैर्वणे ,-निधीयन्ते निजा गुणाः? ।।248 ।।
शुद्धात्मा स्वयं अधम के साथ मिलकर कार्य नहीं करते है। चितकबरी वस्तु इतर वर्ण के साथ क्या स्वयं के गुणों को रख सकती है ?
जडात्मसु स्थिता व्यर्थ, महत्यपि महस्विता । व्यनक्ति स्वपरव्यक्तिं, नेन्दोर्भा भासुराऽपि यत् ।।249।। . जड़ बुद्धिवाले व्यक्तियों में स्थित महान् गुणगणों (दया उदारता आदि विशाल गुणों) की विद्यमानता निरर्थक मानी गयी है। चन्द्रमाँ की आभा अत्यन्त दीप्तिमान् (शीतलतादायक) होने पर भी स्वता एवं परता को प्रकट नहीं कर सकती है। जातौ सदृशि सर्वत्र, गोत्रमत्रोन्नतिप्रदम् । पशुत्वे सति सिंहस्यो,-पमा रम्या शुनश्च न।।250||
सर्वत्र जाति मे समान होने पर भी गौत्र से उन्नति प्राप्त होती है। पशु होने पर भी सिंह की उपमा रम्य होती है, कुत्ते की नहीं।
माठमाठठOPBB88888888
8
88888888888888888888880
8800058888888ठाठमाठठछठन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org