Book Title: Suktaratnavali
Author(s): Sensuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 41
________________ 38888899999900000 88888888 mo सूक्तरत्नावली / 39 है। क्या स्त्रियों के बालो की रेखा में सिंदूर शोभित नहीं होता है ? गुणे गतेऽपि केषांचि,-न्न यशो याति जातुचित्। न किं मुण्डितमुण्डाऽपि, वधूःसीमन्तिनी मता? ||113।। कभी-कभी कुछ व्यक्तियों के गुण जाने पर भी यश नहीं जाता है। क्या सिर मुण्डित होने पर भी बहु स्त्री नहीं मानी जाती है ? . तुगेष्वतुष्टस्तुच्छात्मा, नानर्थ कर्तु मीश्वरः । करोति शशकः किंचिद, भूधरेषु विरोधवान् ?||114।। उच्चात्माओं से असन्तुष्ट हीन व्यक्ति उनका अनर्थ करने में सक्षम नहीं होता है। पर्वतों में विरोधवाला शक्तिहीन खरगोश पर्वतों का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। किं करोति पिता श्रीमान्, यद्यभाग्यभृतः सुतः ?। शंखो भिक्षामटन् दृष्टो, रत्नाकरभवोऽपि यत्।।115।। __यदि पुत्र दुर्भाग्यपूर्ण हो तो धनवान् पिता भी क्या कर सकता है ? जैसे- रत्नाकर मे उत्पन्न हुआ शंख भिक्षा के लिए धूमता हुआ दिखाई देता है। प्रस्तावे पाप्मनां पापाः प्रजायन्ते प्रकाशिनः। द्योतन्ते खलु खद्योताः, तमिस्रे सति सर्वतः।। 11611 __ पापी व्यक्तियों का पाप भी अवसर पर प्रकाश को उत्पन्न करता है, सभी ओर अंधकार होने पर जुगनु निश्चित ही चमकता है। हृद्यहृद्योऽपि सर्वत्र, मान्यो मधरवाग भवेत् । वर्यस्तूर्येषुशंखोऽन्त,–श्चक्रोऽपि(र्वक्रोऽपि?)शुभगीरिति|117 | मधुरवाणी प्रिय हो या अप्रिय सर्वत्र मान्य होती है। जैसे शंख के अन्त (चतुर्थ भाग) में वक्र होने पर भी जो मधुर (शुभ) वाणी निकलती है वह सर्वोत्तम मानी जाती है। 8885890586888888003888888888888888806 door 888888888888888868800303088856003003880888888888888888888888888888866 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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