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46 / सूक्तरत्नावली
क्या अन्धा व्यक्ति हाथ मे दर्पण होने पर भी अपना मुख देख सकता है ? अर्थात् नहीं।
परात् प्राप्तप्रतापानां, बलाधिक्यं कियच्चिरम् । दिवैवोष्णत्वमुष्णांशु-तप्तानां रजसामभूत्।।149 ।।
अन्य व्यक्तियों से प्राप्त बल की अधिकता कितने समय तक होती है ? दिन में सूर्य की गर्मी से तपी हुई धूल कुछ समय बाद स्वयं शीतल हो जाती है। महान्तो मिलिताः सन्तो, यच्छन्त्याधिक्यमात्मनः। शुक्ति)संयुक्तितो मुक्ता,-फलत्वं जलमापयत्।।150 ।।
महान् व्यक्ति मिलने वाले को अपना आधिक्य देते हैं। सीप जल से संयुक्त होकर मोती प्रदान करती है।
स्वच्छात्मनि सङ्गतेऽपि, श्यामात्मा यात्यनिर्वृतिम् । कर्पूरेऽन्तर्निहितेऽपि, दृगश्रूणि विमुंचति।।151।।
स्वच्छ आत्मा का संग होने पर भी कलुषित आत्मा दुखी होता है। कपूर अपने भीतर डालने पर आँखे आँसू छोड़ती हैं।
नैवास्थानस्थितं वस्तु, वस्तुतः श्रियमश्नुते। महार्ण्यमपि काश्मीर, रोचते न विलोचने।। 152 ||
अनुचित स्थान पर स्थित वस्तु कल्याण को प्राप्त नहीं करती है। महामूल्यवान होने पर भी केसर आँखो में नहीं लगाई जाती है।
शुद्धात्मा दुःखदाताऽपि, भवेदायतिशर्मदः । बाष्पपातेऽपि कर्पूराच्–छैत्यं तदनु चक्षुषोः ।। 153 ।।
शुद्ध आत्मा दुखदाता होने पर भी भविष्य में सुख देने वाला होता है। कपूर से आँखों से पानी गिरने पर भी बाद में शीतलता प्राप्त होती है।
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