Book Title: Suktaratnavali
Author(s): Sensuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 21
________________ सूक्तरत्नावली / 19 ऋतु होने पर भी क्या करीर का वृक्ष पत्र विहीन नहीं होता है ? नीचसंगेऽपि तेजस्वी, नैर्मल्यं भृशमश्नुते। किमभूद् भस्मलिप्तेऽपि, दर्पवृद्धिर्न दर्पणे।। 15 ।। नीच व्यक्ति का संग होने पर भी तेजस्वी व्यक्ति की निर्मलता तो अधिक बढ़ती है। क्या दर्पण के भस्म (राख) से लिप्त होने पर भी उसके तेज में वृद्धि नही होती है ? अर्थात् अवश्य होती है। बिभर्ति, भृशमुल्लास, सद्वृत्तः पीडितोऽपि हि। किं नाऽभून्मार्दवं भूरि-वह्नौ मुक्तेऽपि पर्पटे ? || 16।। ___ सवृत्ति वाले व्यक्ति पीड़ित होने पर भी हृदय में अत्यधिक उल्लास धारण करते है। क्या पर्पट के अग्नि में छोड़े जाने पर वह अधिक मृदु नहीं होता है ? सेव्यः स्यान्नार्थिसार्थानां, महानपि धनैर्विना। सेव्यते पुष्पपूर्णोऽपि, पलाशः षट्पदैर्न यत्।। 17 || __ धन के बिना महान् व्यक्ति भी इच्छुक लोगों द्वारा सेव्य नहीं होता हैं। जैसे (पत्रविहीन) पलाश का वृक्ष पुष्प से पूर्ण होने पर भी भँवरों द्वारा सेव्य नहीं होता है। हन्त ! हन्ति तमोवृत्ति-माहात्म्यं महतामपि। अभवत् प्रथमः पक्षः, श्यामः शशिनि सत्यपि।। 18।। तमोवृत्ति महान व्यक्तियों की महानता का भी नाश कर देती है, जैसे प्रथम पक्ष में चन्द्रमाँ की चाँदनी उज्ज्वल होते हुए भी कालिमा को प्राप्त करती है। सतामपि बलात्काराः, सुकृते न च दुष्कृते। घृतं भुड्क्ते बलादश्व,-स्तृणान्यत्ति स्वयं च यत्।।19।। सज्जन व्यक्ति विवशता होने पर भी अच्छे कार्य ही करते हैं, बुरे 330000000000000000000000000000000ठन 3300000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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