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७८ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३/जुलाई-सितम्बर २००८ फलस्वरूप तत्कालीन समाज में दूर-दूर तक ख्याति प्राप्त किये। कालान्तर में पूर्व से चले आ रहे वैदिक धर्म (ब्राह्मण धर्म) तथा ईसा पूर्व छठी शताब्दी में बौद्ध धर्म के अस्तित्व में आने तथा उन्हें राजकीय संरक्षण प्राप्त होने एवं जैन धर्म को बाद के राजाओं द्वारा संरक्षण नहीं मिलने के कारण जैन धर्म का ह्रास होना स्वाभाविक था। साथ ही जैन धर्म के अपने कठोर नियम एवं संघ विवाद के कारण मिथिला क्षेत्र से जैन धर्म का पलायन हुआ, किन्तु पश्चिम भारत में उसने अपने अस्तित्व को बनाये रखा। संदर्भ :
१. शतपथब्राह्मण - १.४.१.१०. २. पूर्वोक्त - १.४.१.१४.
मिश्र, योगेन्द्र (१९८१) हिस्ट्री ऑफ विदेह, पटना, पृ० ४. ४. त्रिवेद, देव सहाय (१९५४) प्राङ्मौर्य-बिहार, पटना, पृ० ०१.
दीक्षित, शंकर बालकृष्ण (१९६१) भारतीय ज्योतिष, पूना, पृ० १३६-४०. डानिनो, मिचेल, द हड़प्पा हेरिटेज एण्ड द आर्यन प्रॉबलम, मैन एण्ड इनवार्नमेंट, पूना, xxviii (१) २००३ पृ० २२. जैन, सागरमल, (२००४) जैन धर्म की ऐतिहासिक विकासयात्रा, शाजापुर, पृ० ०२. विविधतीर्थकल्प, भाग-१, कल्प १९. एम० कृष्णमाचार्य, ए हिस्ट्री ऑफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर,
पृ० ५३. १०. पूर्वोक्त, पृ० ५३-५४. ११. पूर्वोक्त, पृ० ५९-६०. १२. जैन, कैलाशचन्द्र (२००५) जैन धर्म का इतिहास, भाग - १, नई
दिल्ली, पृ० १७. - १३. अंगुत्तरनिकाय, २, पृ० १९०-९४, २००-२.
१४. होरिक, जी (सं०) बायोग्राफी ऑफ धर्मस्वामिन, पृ० ६०.
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