________________
श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३ जुलाई-सितम्बर २००८
जैन जगत्
भोगीलाल लहेरचन्द भारतीय संस्कृति संस्थान, दिल्ली में २०वें अखिल भारतीय ग्रीष्मकालीन प्राकृत भाषा एवं साहित्य पाठ्यक्रम का समापन समारोह
___ भोगीलाल लहेरचन्द भारतीय संस्कृति संस्थान, दिल्ली में २०वें अखिल भारतीय ग्रीष्मकालीन प्राकृत भाषा एवं साहित्य के ग्रीष्मकालीन सत्र का समापन दिनांक ०१ जून २००८ को सम्पन्न हुआ। भारत में प्राकृत भाषा एवं साहित्य का आचार्य हेमचन्द्र व्याकरण के सूत्रों के द्वारा अध्ययन-अध्यापन कराने वाली यह एकमात्र संस्था है।
इस अवसर पर डॉ. जितेन्द्र बी० शाह (निदेशक, लालभाई दलपतभाई संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद) ने कहा कि प्राकृत भाषा केवल जैन समाज की है ऐसा नहीं है। आज विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में अभिज्ञानशाकुन्तलम, मृच्छकटिकम्, कर्पूरमंजरी, कुवलयमाला, गाथासप्तशती की पुस्तकें पढ़ाई जाती हैं जिसे समाज के हर वर्ग के अध्येता पढ़ते हैं। उन्होंने समारोह में उपस्थित भारत सरकार के प्रतिनिधि व अधिकारियों के समक्ष प्राकृत भाषा व साहित्य अकादमी खोलने का प्रस्ताव रखा।
___ विशिष्ट अतिथि डॉ० गोदावरीश मिश्र (सदस्य सचिव, आई०सी०पी०आर०, नई दिल्ली) ने 'रात्रिर्गमिष्यति ... ज्जहारः का उदाहरण देते हुये कहा कि भाज सोचकर बैठने की जरूरत नहीं है, अपितु वर्तमान कनिष्ठ छात्र एवं आने वाली पीढ़ी के लाभ हेतु कटिबद्ध होकर कार्य करने की आवश्यकता है।
___ इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि डॉ० पी०वी० जोशी (भारतीय विदेश सेवा, भारत सरकार) ने संस्थान द्वारा चलाये जा रहे ग्रीष्मकालीन विद्यालय (प्राकृत भाषा व साहित्य) की प्रशंसा की। साथ ही संस्थान को प्राकृत भाषा साहित्य के उत्थान हेतु तन-मन द्वारा अपना सहयोग देने की बात कही।
समारोह की अध्यक्षता करते हुये डॉ० के०के० चक्रवर्ती, आई०ए०एस० (सदस्य सचिव, आई०जी०एन०सी०ए०, नई दिल्ली) ने जैन आगमों का उल्लेख करते हुए उसमें स्थान-स्थान पर मागधी में प्रयुक्त शब्दों का वर्णन किया। अंत में आपने छात्र-छात्राओं से प्राकृत भाषा को देश-देशान्तर तक प्रचारित करने हेतु सहयोग आमन्त्रित किया।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org