Book Title: Sramana 2008 07
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 236
________________ गाहा : एयं न होइ जोग्गं नामं एयस्स दुट्ठ चरियस्स! । पावो अमंगलो एस जेण एयं कयं पावं ।। २३३।। संस्कृत छाया : एतन्न भवति योग्यं नाम एतस्य दुष्टचरितस्य।। पापोऽमङ्गल एष येनैतत् कृतं पापम् ।।२३३।। गुजराती अर्थ :- आ दुष्ट चारित्रवालानुं सुमंगल नाम पण योग्य नथी केमके एणे एवा प्रकारचें पाप कर्यु छे जेथी पापी अमङ्गल नामनो थयो छे! हिन्दी अनुवाद :- इस कुचारित्री का सुमंगल नाम भी योग्य नहीं है, क्योंकि स्वयं के किए हुए पाप से ही यह पापी अमङ्गल (नामवाला) हुआ है। गाहा : कन्न-कडुएहिं एवं असब्भ-वयणेहिं तेण लोएणं। अक्कोसिओ स बहुहा सुदीण-वयणो तहिं वरओ ।। २३४।। संस्कृत छाया : कर्णकटुकैरेवमसभ्य-वचनैस्तेन लोकेन । आक्रोशितः स बहुधा सुदीनवदनस्तत्र वराकः ।।२३४।। गुजराती अर्थ :- आ रीते त्यां - ते अत्यंत दीन मुखवाळो बीचारो कर्णकटु असभ्य वचनोथी लोको द्वारा घणा प्रकारे तिरस्कृत थयो। ' हिन्दी अनुवाद :- इस तरह वहां बिचारा अत्यंत दीनमुखवाला- कर्णकटु असभ्यवचनों से लोगों के द्वारा तिरस्कृत हुआ है। गाहा : तेणेव देवेण तहि माया-वित्ताइं रोवमाणाई। अणुसासियाई सम्मं तुहिक्काई तु जायाई ।। २३५।। संस्कृत छाया : तनैव देवेन तत्र मातापितरौ रूदन्तौ। अनुशासितौ सम्यक् तूष्णिकौ तु जातौ ।।२३५।। गुजराती अर्थ :- व्यारे ते पुत्र देवे रड़ता माता-पिताने सारी बीते समजावता तेओ शांत थया! (प्राकृतने कारणे मूलमां नपु. लिङ्ग छे।) हिन्दी अनुवाद :- तब पुत्र रूप देव द्वारा रोते हुए माता-पिता सम्यक् प्रकार से समझाकर शांत किये गये। 393 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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