Book Title: Sramana 2008 07
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 239
________________ हिन्दी अनुवाद :- तब वसुमती ने बहुमान से उस वचन को स्वीकारा तथा बड़े वैभव से भाई के पास से आज्ञा लेकर उसी नगर में सुधर्म नाम के सूरिपुङ्गव के पास बहुत साध्वीगण की सेवायुक्त चन्द्रयशा नाम की महत्तरा साध्वी को देव ने स्वयं अर्पित की और महत्तरा ने भी आगमविधि से दीक्षा दी। गाहा : सोवि सुमंगल-खयरो गुरु-रोसेणावि तेण देवेण । दठूण दीण-वयणो न मारिओ कहवि हु दयाए ।।२४३।। संस्कृत छाया : सोऽपि सुमङ्गलखेचरो गुरूरोषेणापि तेन देवेन । दृष्टवा दीनवदनो न मारितः कथमपि खलु दयया ।।२४३।। गुजराती अर्थ :- ते देवे दीनमुखवाळा सुमङ्गल विद्याधरने जोईने अत्यंत रोष होवा छता पण करूणाथी तेने मार्यो नहीं! हिन्दी अनुवाद :- अत्यंत रोष होने पर भी सुमङ्गल खेचर का दीनमुख देखकर करुणा के कारण उसे मारा नहीं। गाहा : नेऊण माणुसुत्तर-गिरिस्स परओ स उज्झिओ वरओ । अह सो तियसो पत्तो नियय-विमाणम्मि वेगेण ।। २४४।। संस्कृत छाया : नीत्वा मानसोत्तरगिरेः परतः स उज्झितो वराकः । अथ स त्रिदशः प्राप्तो निजकविमाने वेगेन ।।२४४।। गुजराती अर्थ :- मानुषोत्तरपर्वतनी पेली बाजु लई जईने ते बीचाराने छोड्यो, हवे जल्दीथी ते देव पोताना विमानमा गयो। हिन्दी अनुवाद : - मानुषोत्तर पर्वत की दूसरी ओर ले जाकर उस बेचारे को छोड़ दिया। बाद में जल्दी से वह देव अपने विमान में गया। गाहा :- पसुमताना देवलोकमां उत्पत्ति सावि हु वसुमइ-अज्जा समिई-गुत्तीसु सम्ममुवउत्ता। सज्झाय-ज्झाण-जुत्ता उज्जुत्ता विणय-करणम्मि ।। २४५।। पुव्व-सय-सहस्साई बहूणि काऊण पवर-सामन्नं । संलेहणाए सम्मं झोसित्ता' नियय-देहं तु ।। २४६।। १. झोसित्ता = झूसित्वा, क्षीणं कृत्वा 396 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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