Book Title: Sramana 2008 07
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 238
________________ गाहा : जइवि हु सुंदरि ! तुमए अयाणमाणाए एयमायरियं । तहवि हु इमस्स पावस्स ओसहं होउ पव्वज्जा ।। २३९।। संस्कृत छाया : यद्यपि खलु सुन्दरि! त्वया अजानन्त्या एतदाचरितम् । तथापि खल्वस्य पापस्यौषथं भवतु प्रव्रज्या ||२३९।। गुजराती अर्थ :- वळी हे सुन्दरि! जो के अजाणता थी तें आ पाप आचर्यु छे, तो पण आ पाप नुं औषध निश्चे प्रव्रज्या थाओ। हिन्दी अनुवाद : - हे! सुंदरि! यद्यपि तूंने तो अज्ञानता से यह पाप किया है फिर भी इस पाप के लिए प्रवज्या ही औषध है। गाहा :- पसुमताना दीक्षा तत्तो य वसुमईए तहत्ति बहु मन्नियं तयं वयणं । महईए विभूईए निय-बंधव-अणुमया ताहे ।।२४०।। तत्थेव य नयरीए सुहम्म-नामस्स पवर-सूरिस्स । मयहरियाए बहुविह-साहुणि-गण सेविय-कमाए ।। २४१।। चंदजसा- नामाए समप्पिया सुर-वरेण सयमेव । तीएवि य आगम-विहिणा दिन्ना दिक्खा वसुमईए ।। २४२।। त्रिभिः कुलकम्। संस्कृत छाया : ततश्च वसुमत्या तथेति बहुमतं तकं वचनम् | महत्या विभूत्या निजबान्धवानुमता तदा।।२४०।। तत्रैव च नगर्यां सुधर्म-नाम्नः प्रवरसूरेः । महत्तरायै बहुविध साध्वीगण-सेवित-क्रमायैः।।२४१।। चन्द्रयशा नाम्न्यै समर्पिता सुरवरेण स्वयमेव । तयाऽपि च आगमविधिना दत्ता दीक्षा वसुमत्यै।।२४२।। गुजराती अर्थ :- तेथी वसुमतीए बहुमानपूर्वक ते वचन स्वीकार्यु, व्यारे अत्यंत ऋद्धिपूर्वक पोताना भाईओ पासेथी मेळवेली अनुज्ञावाळी, ते ज नगरमा सुधर्म नामना प्रवरसूरीश्वरनी, घणा साध्वीगण थी सेवाता चरणकमलवाळी चन्द्रयशा नाम नी महत्तरीकाने देवे स्वयं ज वसुमती समर्पित की। अने ते महत्तरा साध्वीए पण आगम विधि वड़े वसुमती ने दीक्षा आपी। 395 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 236 237 238 239 240 241 242