Book Title: Sramana 2008 07
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 235
________________ संस्कृत छाया : एतस्मै पततु विद्युत् सुप्तो मा एष बुध्यतां पापः । निर्दोषोऽपि धनपतिरपहृतो येन पापेन || २३०|| गुजराती अर्थ :- निर्दोष एवा धनपतिनुं जे आ पापी वडे अपहरण करायुं छे तेवा आनी उपर विजळी पडे अथवा सूतेलो. एवो आ पापी क्यारे पण जागे नहीं । हिन्दी अनुवाद :इस पर बिजली गिरे या सोया हुआ यह पापी कभी न जगे । निर्दोष धनपति का जो इस पापी ने अपहरण किया है इसके लिए गाहा : हा! पाव! किं न आसी खयरीओ तुह सरूव - जुत्ताओ । मुद्धा वसुमईए जेण तुमे खंडियं संस्कृत छाया : हा! पाप! किं नासीत् खेचर्यः ते स्वरूपयुक्ताः । मुग्धाया वसुमत्या येन त्वया खण्डितं शीलम् ।। २३१ । । गुजराती अर्थ वळी हे! पापी! तारे रूप लावण्ययुक्त विद्याधरी स्त्रीयो शुं नथी ? के जे कारणथी आ भोळी वसुमतीना शीलनं ते खण्डन कर्यु? हिन्दी अनुवाद :- तथा हे पापी ! रूप - लावण्य से युक्त विद्याधरी स्त्रियां क्या तेरे पास नहीं है ? कि तूने इस भोली वसुमती के शील का खण्डन किया ? गाहा : ता पाव! इण्हि पावसु अणज्ज- कज्जम्मि निरय! निल्लज्ज ! | निय - दुच्चेट्ठिय- सरिसं इह पर लोए फलं कडुयं ।। २३२ । । संस्कृत छाया : - सीलं? ।। २३१।। तस्मात् पाप ! इदानीं प्राप्नुहि अनार्य कार्ये निरत! निर्लज्ज । निज- दुष्चेष्टित-सदृक्षमिहपरलोके फलं कटुकम् ।। २३२ ।। गुजराती अर्थ :- ते कारणथी हे पापी! हे अनार्य कार्य मां रक्त! निर्लज्ज ! आ लोक तथा परलोकमां तुं पोताना दुष्ट आचरण समान कडवा फल ने भोगव । Jain Education International हिन्दी अनुवाद :- अरे! पापी ! निर्लज्ज ! अनार्य कार्य में रक्त! तूं खुद के दुष्टचरित्र के आचरण समान कटु फल को इस लोक में और परलोक में प्राप्त कर । 392 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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