Book Title: Sramana 2008 07
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 233
________________ हिन्दी अनुवाद :- फिर भी वह तनिक भी उड़ने के लिए समर्थ नहीं हुआ, तब उसने जान लिया की कुपित होकर किसी ने अवश्य मेरी विद्या हर ली है। गाहा : तेणेव सभावत्थो जाओ न चएमि गयणमुप्पइउं । एवं विगप्पयंतो एसो दीणत्तणं पत्तो ।। २२४।। संस्कृत छाया : तेनैव स्वभावस्थो जातो न शकनोमि गगनमुत्पतितुम् । एवं विकल्पयन्नेष दीनत्वं प्राप्तः ।। २२४।। गुजराती अर्थ :- तेथी ज मूळ स्वरूपमां आवेलो हुँ आकाशमां उडवा माटे समर्थ नथी थतो ए प्रमाणे विचार करतो ए दीनपणु पाम्यो। हिन्दी अनुवाद :- इसीलिए ही मूलस्वरूपवाला मैं आकाश में उड़ नहीं सकता हूँ, इस प्रकार सोचकर उसने दीनता को प्राप्त की। गाहा : एवं पिय-सहि ! धारिणि ! सोउं तियसस्स भासियं तस्स । सेट्ठी समद्ददत्तो सदसणा सावि से भज्जा ।।२२५।। आलिंगिय तं देवं अइगुरु-सुय-दुक्ख-दलिय-हिययाई। दीहर-सरेण दोण्णिवि करुणं रोत्तुं पवत्ताई ।। २२६।। संस्कृत छाया : एवं प्रियसखे! धारीणि! श्रुत्वा त्रिदशस्य भाषितं तस्य। श्रेष्ठी समुद्रदत्तः सुदर्शना सापि तस्य भार्या।।२२५।। आलीङ्गन्य तं देवमतिगुरुसुत-दुःखदलितहृदयो। दीर्घस्वरेण द्वावपि करुणं रोदितुं प्रवृत्तौ ।।२२६||युग्मम् गुजराती अर्थ :- ए प्रमाणे हे प्रियसखी! धारिणी! ते देवतुं कहेलु सांभळी ने श्रेष्ठी समुद्रदत्त, तेनी पत्नी सुदर्शना पण ते देवने, व ळगीने पुत्रना अति भारे दुःख थी चिरायेला हृदयवाळा बन्ने मोटा अवाज थी करुण रुदन करवा लाग्या। (प्राकृतना कारणे नपु. लिङ्ग छे) हिन्दी अनुवाद :- हे ! प्रिय सखी! धारिणी! इस प्रकार देव का कहा सुनकर श्रेष्ठी समुद्रदत्त, उनकी पत्नी सुदर्शना, (माता-पिता) भी उस देव को पकड़ कर पुत्र वियोग के दुःख से भग्न हृदयवाले वे दोनों जोर-जोर से करुण रुदन करने लगे! गाहा : तह तेहिं तत्थ रुन्नं करुण-पलावेहि नेह-भरिएहिं । जह सो समागय-जणो सव्वोवि हु रोविउं लग्गो ।। २२७।। Jain Education International 390 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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