Book Title: Sramana 2008 07
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 232
________________ हिन्दी अनुवाद :- उस कारण से कोलाहल से जगा हुआ यह पुरुष अभी सुदर्शना को माता कहने के बाद माता के कठोर वचन सुनकर अपने देह को देखने लगा। गाहा : दठूण पुव्व-रूवं निय-देहं विम्हिओ इमो चित्ते । मह विज्जाए पभावो अवहरिओ केण अज्जत्ति? ।। २२१।। संस्कृत छाया : दृष्ट्वा पूर्वरूपं निजदेहं विस्मितोऽयं चित्ते। मे विद्यायाः प्रभावोऽपहृतः केनाद्येति?||२२१।। गुजराती अर्थ :- पूर्वरूप वाळा पोताना देहने जोईने आ मनमां विस्मित थयो के आजे मारी विद्यानो प्रभाव कोणे ही लीधो? हिन्दी अनुवाद :- मूल स्वरूप में स्वयं के देह को देखकर वह मन में विस्मित हुआ कि आज मेरी विद्या का प्रभाव किसने हर लिया? गाहा : एवं विचिंतिऊणं उप्पइउमणेण ताहि एएण। निय-विज्जा संभरिया पवरा नहगामिणी नाम।। २२२।। संस्कृत छाया : एवं विचिन्त्य उत्पतितु-मनसा तदा एनेन । निजविद्यासंस्मृता प्रवरा नभोगामिनी नाम्नी ।।२२२।। गुजराती अर्थ :- आ प्रमाणे विचारीने उडवानी इच्छावाला तेणे त्यारे आकाशगामिनी नामनी पोतानी श्रेष्ठ विधानुं स्मरण कर्यु! हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार सोचकर उड़ने के लिए उसने आकाशगामिनी नाम की अपनी श्रेष्ठ विद्या का स्मरण किया! गाहा : तहवि हु उप्पइऊणं जाहे न चएइ ताहि विनायं । कुविएण मज्झ केणवि विज्जा-च्छेओ कओऽवस्सं ।।२२३।। संस्कृत छाया : तथापि खलूत्पतितुं यदा न शक्रोति तदा विज्ञातम् । कुपितेन मम केनापि विद्याच्छेदः कृतोऽवश्यम् ||२२३।। गुजराती अर्थ :- तो पण निश्चे उडवा माटे ज्यारे ते समर्थ न थयो त्यारे तेणे जाण्यु के कुपित थयेला कोइए अवश्य मारी विद्यानो छेद को छ। 389 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242