Book Title: Sramana 2008 07
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 234
________________ संस्कृत छाया : तया ताभ्यां तत्र रुदितं करुणप्रलापैः स्नेह भृतैः । यथा स समागतजनः सर्वोऽपि खलु रोदितुं लग्नः।।२२७।। गुजराती अर्थ :- स्नेहथी भरेला करूण प्रलापोथी ते बे वड़े त्यां ते प्रमाणे रुदन करायु के जेथी त्यां आवेला बधा लोक पण रडवा लाग्या। हिन्दी अनुवाद :- स्नेह से पूरित करुण प्रलापों से युक्त उस माता-पिता ने इस तरह रुदन किया कि उपस्थित सभी लोग रोने लगे। गाहा : सोऊण रुन्न-सई सेट्ठिस्स गिहम्मि नयर-वत्थव्वो। सव्वोवि हु संमिलिओ सबाल-वुड्डो जणो तत्थ ।। २२८।। संस्कृत छाया : श्रुत्वा रुदितशब्दं श्रेष्ठिनो गृहे नगरवास्तव्यः । सर्वोऽपि खलु सम्मिलितः स बालवृद्धो जनस्तत्र ।।२२८।। गुजराती अर्थ :- श्रेष्ठीना घरमा रडवाना अवाजने सांभळीने नगरमां रहेता बाल-वृद्ध सहित बधा लोको भेगा थई गया। हिन्दी अनुवाद :- श्रेष्ठी के घर में रुदन की आवाज सुनकर नगर में रहे सभी बालवृद्ध सहित इक्कट्ठे हो गए। गाहा : नाऊण य वुत्तंतं सव्वं अन्नुन्न-वज्जरिज्जंतं । अक्कोसंति बहुविहं सुमंगलं नयर-नारीओ ।। २२९।। संस्कृत छाया : ज्ञात्वा च वृत्तान्तं सर्वमन्योन्यं कथ्यमानम्। आक्रोशन्ति बहुविधं सुमङ्गलं नगरनार्यः।।२२९।। गुजराती अर्थ :- परस्पर कहेवाता ते सर्व वृत्तान्तने जाणीने नगरनी स्त्रीओ घणा प्रकारे सुमंगल पर घणी रीते आक्रोश करती हती। हिन्दी अनुवाद :- परस्पर एक दूसरे से कहे गये वृत्तान्त जानकर नगर की स्त्रियां सुमंगल पर बहुत आक्रोश करती थीं। गाहा : एयस्स पडऊ विज्जू सुत्तो मा एस बुज्झउ पावो । निद्दोसोवि धणवई अवहरिओ जेण पावेण ।। २३०।। 391 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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