Book Title: Sramana 2008 07
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 187
________________ गुजराती अर्थ :- एटले चित्रगति कहे छे, हे उत्कंठितमनवाला चित्रवेग ! तूं सांभळ ! ज्यारे कनकमालानुं रूप करीने हुं त्यां थी निकळयो । हिन्दी अनुवाद :- अतः चित्रगति ने कहा- 'हे चित्रवेग ! तू सुन ! जब कनकमाला के रूप को धारण करके मैं वहां से निकला गाहा : आरूढो सिबियाए पत्तो य कमेण वर- समीवम्मि । विज्जाहरि - गण - गिज्जंत- विविह- वर- मंगलुप्पीलो ।। ७४ ।। संस्कृत छाया : आरूढः शिबिकायां प्राप्तश्च क्रमेण वरसमीपे । विद्याधरीगणगीयमान- विविध-वरमड़गलसमूहः । । ७४ ।। गुजराती अर्थ :- शिबिका मां आरुढ थयेलो क्रमे करी ने विद्याधरी गणथी गवात | विविध प्रकारना श्रेष्ठ मंगल गवाता गीतोना समूहसाथे हुं व्यारे वर पासे पहोंच्यो । हिन्दी अनुवाद और शिविका में आरूढ़ मैं क्रम से विद्याधरीगण द्वारा श्रेष्ठमंगल गीतों के समूह के साथ वर के पास पहुँचा। - गाहा :- नभोवाहन एवं स्त्रीरूपधारक चित्रगतिनो विवाह लग्गे समागयम्मी गहिओ मह कर यलो सहरिसेण । नहवाहणेण, तत्तो कमेण वत्तो य वीवाहो । । ७५ ।। संस्कृत छाया :- कें लग्ने समागते गृहीतो मम करतलः सहर्षेण । नभोवाहनेन ततः क्रमेण वृत्तश्च विवाहः । । ७५ ।। गुजराती अर्थ :- लग्न समय आवे छते नभोवाहने हर्षपूर्वक मारो हाथ ग्रहण कर्यो व्यार पछी क्रमे करीने विवाह थयो ! | हिन्दी अनुवाद :विवाह के समय पर नभोवाहन ने हर्ष सहित मेरा हाथ ग्रहण किया, बाद में क्रम से विधिपूर्वक विवाह हुआ ! गाहा : नहवाहणस्स पुरओ नट्टं विविहंगहार - सोहिल्लं । पारब्द्धं वार- विलासिणीहिं वर- गेय- संवलियं ।। ७६ ।। संस्कृत छाया : नभोवाहनस्य पुरतो नाट्यं विविधाङ्गहार शोभावद् | प्रारब्धं वारविलासिनीभिर्वरगेय-संवलितम् ।। ७६ ।। Jain Education International 344 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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