Book Title: Sramana 2008 07
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 229
________________ गाहा : पुव्व-सय- सहस्साइं तीसं काऊण उग्ग- तव चरणं । तेमासियं च काऊण अणसणं चत्त - देहो सो । । २११ ।। उववण्णो ईसाणे अच्छर-गण- संकुले विमाणम्मि । चंदज्जुणाभिहा संस्कृत छाया : पूर्वशतसहस्राणि त्रिंशत् कृत्वा उग्र तपश्चरणम् । त्रैमासिकं च कृत्वा अनशनं त्यक्तदेहः सः । । २११ । । ईशानेऽप्सरागण - सङ्कले चन्द्रार्जुनाभिधाने देवश्चन्द्रार्जुनो उपपन्न विमाने । नाम ||२१२|| युग्मम् । गुजराती अर्थ :- श्रीश लाख पूर्व सुधी उग्र तपयुक्त चारित्र पाळीने अन्ते त्रण मासनं अनशन करीने छोडेला देहवाळो ते ईशान देवलोकमां चन्द्रार्जुन नामना विमानमा अप्सराओ साथेनो चन्द्रार्जुन नामनो देव थयो । हिन्दी अनुवाद :- तीस लाख पूर्व तक उग्र तपयुक्त चारित्र का पालन करके अन्त में तीन मास का अनशन कर के आयु पूर्ण होने पर ईशान देवलोक में अप्सरागण से युक्त चन्द्रार्जुन नाम के विमान में चन्द्रार्जुन नाम का देव बना । गाहा : ओहिन्नाणेण तओ नाऊणं सयल- नियय- वृत्तंतं । सो हं भो भो भद्दा ! समागओ एत्थ नयरीए ।। २१३ ।। संस्कृत छाया : अवधिज्ञानेन तस्माद् ज्ञात्वा सकल-1 न- निजवृत्तान्तम् । सोऽहं भो ! भो ! भद्राः ! समागतोऽत्र नगर्याम् || २१३ || गुजराती अर्थ :- त्यार पछी अवधिज्ञान वड़े पोतानो सम्पूर्ण वृतान्त जाणी ने हे! हे ! भद्रलोको ! ते हुं अहीं आ नगरीमां आव्यो । हिन्दी अनुवाद :- बाद में अवधिज्ञान से अपने सम्पूर्ण चारित्र को जानकर हे महानुभावो! मैं यहाँ इस नगरी में आया हूँ । गाहा : देवो चंदज्जुणो नाम ।। २१२ । । युग्मम् । वसुमइ - कंठ - विलग्गो पच्छाइय- निय- रूवो संस्कृत छाया : Jain Education International सयणीय- गओ पसुत्तओ दिट्ठो । धणवइ-रूवेण एस ठिओ ।। २१४ । । वसुमती - कण्ठ-विलग्नः शयनीय गतः प्रसुप्तको दृष्टः । धनपतिरूपेणैष प्रच्छादित- निजरूपो 386 For Private & Personal Use Only स्थितः ।।२१४|| www.jainelibrary.org

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